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Tuesday, March 11, 2025

बेचैन दिल की तमन्ना, ✍️ हेमन्त कुमार

बेचैन दिल की तमन्ना 🙇‍♂️🙇‍♂️

बेचैन दिल की तमन्ना है कि इस दिल को करार आ जाए।
अब वो वक्त बीत चुका है, बस ये दिल इतना समझ जाए।।

ना वो अब मोहब्बतों का सिलसिला रहा ना वो बहारें रही।
अब तो ऐसा साकी चाहिए जो बिन बोले सब समझ जाए।।

दिन लुढ़क रहा है आहिस्ता-आहिस्ता शाम के आगोश में।
रात की गहरी ‘खामोशी’ में मद्धम सा संगीत बजाया जाए।।

बेवजह आस्तीन में क्यों छुपाकर रखना जहरीले सांपों को।
भनक लगते ही ‘बीन’ बजाकर सपेरों के हवाले किया जाए।।

ढलान आते ही जल्दी मुकम्मल हो जाएगा जिंदगी का सफर।
यकीनन समय रहते सारे आधे-अधूरे काम निपटा लिए जाए।।

दो-जहाँ की सैर करके वापस आ गए हैं हम अपने नशेमन में।
कश्ती को वापस अपने सफर पर समंदर में लौटने दिया जाए।।
🫡🫡

✍️ हेमन्त कुमार

Sunday, March 2, 2025

ओये जंगली!!!, ✍️ हेमंत कुमार

ओये जंगली!!! 🤦🤦

वो फोन मिलाते ही अपनी खनकती आवाज़ में जब ये कहती है तो.....
गिटार सा बजने लगता है उस लड़के के दिल में.....
उसका चेहरा एक दम से खिलखिला उठता है.....
यकायक सुध~बुध खो बैठता है उसका मन और उसकी धड़कने तेजी से बढ़ने लगती हैं.....

और फिर जब वो ये कहती है फ्री हूं एक घंटे के लिए चलो मिलते हैं तो.....
तितलियां सी उड़ने लगती हैं उसके हर तरफ.....
उसके आसपास सब~कुछ एकदम से महकने लगता है.....
सब काम~धाम छोड़ के वो निकल पड़ता है उससे मिलने बस अपनी ही धुन में.....

कॉफी टेबल पर बैठते ही दोनों एक दूसरे को नज़र भर देखते हैं......
और फिर एक लंबी खामोशी घेर लेती है उन्हें......
जज़्बात उमड़ पड़ते हैं और कर देते हैं दोनों को बेचैन.....
और फिर वो थाम लेता है उसका कोमल हाथ......और ये स्पर्श उतर जाता है दोनों के शरीर में बिजली की तरह......और एक सकारात्मक ऊर्जा कर देती है दोनों को सम्मोहित.....

और इसी बीच टेबल पर गर्मागर्म कॉफी दस्तक देती है.....

वो दोनों अपने-अपने कॉफी के मग उठाकर फिर से खो जाते हैं पुरानी यादों के खजाने में......बातें करते-करते वो अचानक से कहती है......कुछ बात भी नहीं की और देखो पता ही नहीं कैसे एक घंटा बीत गया कॉफी पीते-पीते.....

और फिर अचानक से घड़ी में देखते हुए हड़बड़ाकर......ओये!!! 
अब मैं चलती हूं......

पर्स और मोबाइल संभालते हुए उसने जब ये कहा.....

वो बस एक दम हल्का सा मुस्कुरा दिया.....
और वो पगली झट से ऐसे उसके गले लग जाती है......जैसे बिन कहे आश्वासन दे रही हो कि जल्दी मिलते हैं......

वो हंसते खिलखिलाते मनमोहक अंदाज़ में चल देती है......
पर अपना कुछ हिस्सा छोड़ जाती थी उस जंगली के पास.....जिससे वो रह सके हरा-भरा......अगली छोटी सी मुलाकात तक......❤️☘️

........और इस तरह वो दोनों फिर से लग जाते हैं अपने अपने जीवन की आपा-धापी में......नियति द्वारा मुकर्रर किए गए किरदारों को शिद्दत से निभाने में......अपनी अपनी दुनिया को सजाने में.......

.......यूं भी निभाई जाती रही है एक अनकही, अनसुनी, अनजान “मोहब्बत” बरसों तक......
🥰🥰

✍️ हेमन्त कुमार

Friday, January 31, 2025

नीला सफेद स्वेटर, ✍️ हेमंत कुमार

नीला सफेद स्वेटर 🗻🗻

ये नीला-सफेद ‘स्वेटर’ महज एक स्वेटर नहीं है.....
मेरे ‘दिल’ के बड़े गहरे ‘जज़्बात’ जुड़े है इससे.....

यही स्वेटर पहना था मैंने: 

जब बसंती मौसम में अनायास ही मिले थे हम.....
जब पहली दफा बैठे थे हम कैफे ‘कॉफ़ी डे’ में सुकचाते हुए.....
जब हमने इज़हार किया था एक दूसरे से अपनी बेपनाह मोहब्बत का.....

ये स्वेटर मैं गाहे-बगाहे पहन लेता हूं जब भी पाता हूं खुद को तुम्हारे बेहद ‘करीब’ सारी दीन-दुनिया से परे.....

ये कपड़े बोल नहीं पाते, मगर....
इनके रंग, इनकी महक, इनकी गुलझटें 
कितना कुछ कह देती हैं बिना कुछ कहे.....

अगली बार तुम भी पहन कर आना वही पुराना लाल जैकेट और वही खूबसूरत सी मुस्कान लाना अपने चेहरे पर.....

तुम फिर से आना अगली सर्दियों में, मगर शर्त ये है कि अपनी आंखों में फिर से वही ‘चमक’ लाना तुम.....

तुम्हें मालूम है तुम्हारी ‘आंखों’ की चमक से ‘रोशनी’ मिलती है अंधेरी रातों में देखे गए मेरे ‘सपनों’ को.....
🙂🙂

✍️ हेमंत कुमार

Sunday, January 5, 2025

एक और कहानी, ✍️ हेमंत कुमार

एक और कहानी ❤️🐦

एक जमाना था.....एक ‘राजा’ था, एक ‘रानी’ थी।
खत्म हुई अब वो परियों की/ महलों की सब कहानी है।।

मेरा फोन यूं ही भरा पड़ा है ‘उसकी’ पुरानी तस्वीरों से।
मेरा दिल यूं ही ‘वीरान’, इक अरसे से ‘बिल्कुल’ खाली है।।

वो समझा ही नहीं कभी मेरे दिल के उन जज्बातों को।
उसको शायद ‘इल्म’ भी नहीं, अब वो सब बातें पुरानी हैं।।

फिर कल सांझ एक चिड़िया आकर बैठी मेरे ‘आंगन’ में।
हंसते हुए बोली पहचाना नहीं, “पहचान” हमारी पुरानी है।।

मैंने कहा वो राजा/रानी, वो कहानी, वो सब बातें पुरानी हैं।
वो मुस्कुराई फिर बोली, वो रात गई, ये नई ‘सुबह’ निराली है।।

फुदककर बैठी वो मेरे कांधे पर, कभी मेरे माथे को सहलाई।
मैं कल फिर से आऊंगी, अब मैं ये “दोस्ती” यूं ही निभाऊंगी।।

हंसकर बोली, बैठो ना यूं उदास, यही जीवन/ यही कहानी है।
हम सब को यूं ही अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी है।।
🤍🕊️

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, December 17, 2024

मन का मौसम, ✍️ हेमंत कुमार

मन का मौसम 🌻🌺

अहा! फिर से मन का मौसम आ गया है.....
खिली-खिली धूप भी मन को भाने लगी है।
उदासी जो छाई थी महीनों से जाने लगी है।।
ठंडी हवा चेहरे की ‘मुस्कान’ बढ़ाने लगी है।
वही पुरानी नीली स्वेटर मुझे सुहाने लगी है।।

अहा! फिर से मन का मौसम आ गया है.....
याद है तुम्हें वो पिछले सालों की सर्दियां अपनी।
याद है तुम्हें वो ढेर सारी ‘शायराना’ बातें अपनी।।
याद है तुम्हें वो “अलाव” सी तपती सांसें अपनी।
याद है ना तुम्हें वो अधूरी सी ‘मुलाकातें’ अपनी।।

अहा! फिर से मन का मौसम आ गया है.....
ये लो फिर से दिल्ली में इक बार “जश्न ए रेख़्ता” आ गया है।
ये लो फिर से तुम पर ‘मर-मिटने’ का “मौसम” आ गया है।।
ये लो फिर से हमें तुम पर जान लुटाने का सलीका आ गया है।
ये लो फिर से इश्क की अदालत में इक मुकदमा आ गया है।।

अहा! फिर से मन का मौसम आ गया है.....
अबके मैं कर लूंगा ओस की बूंदों को अपनी मुट्ठी में बंद।
अबके मैं कर लूंगा कोहरे की चादर को अपनी सांसों में बंद।।
अबके मैं कर लूंगा सूर्य के ताप को अपनी आंखों में बंद।
अबके मैं कर लूंगा अपनी धडकनों को अपने ही सीने में बंद।।

अहा! फिर से मन का मौसम आ गया है.....
चलो फिर से एक बार अपने मन की कर लेता हूं।
चलो फिर से एक बार इन सर्दियों को जी लेता हूं।।
चलो फिर से एक बार तुम्हें रोज़ याद कर लेता हूं।
चलो फिर से एक बार मन का मौसम जी लेता हूं।।
🫠🫠

✍️ हेमंत कुमार

Wednesday, December 4, 2024

कहानी अनकही, ✍️ हेमंत कुमार

कहानी अनकही- 2 🌺🌻

उसकी कहानी में इक “गज़ब” का किरदार हूं मैं।
उसकी कहानी में इक ‘असल’ का दिलदार हूं मैं।।

आए बहुत से “आनी-फ़ानी” उसकी जिन्दगी में।
उसकी हर सुनी अनसुनी कहानी में नमूदार हूं मैं।।

कच्चा पक्का सा इश्क रहा है कच्ची पक्की उम्रों में।
उसकी सारी आधी-अधूरी चाहतों का हकदार हूं मैं।।

अजीब सी कशिश और नादानी है मेरी चाहतों में।
उसकी हर मौसम की बेवफ़ाईयों में वफादार हूं मैं।।

लबों पर आके कुछ ठहर सा जाता है मेरी सांसों में।
उसकी तमाम अनकही कहानियों का राजदार हूं मैं।।

वक्त की रवानी में, जवानी में, इस ढलती जिंदगानी में।
उसकी हर कहानी में इक किस्सा बेहद ‘यादगार’ हूं मैं।।
❤️

✍️ हेमंत कुमार 

फ़ानी- नष्ट होने वाला.....
नमूदार- नितांत साफ़, जो स्पष्ट दिखाई देता हो.....

Sunday, September 29, 2024

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆

बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा।
तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।।

हर तरफ ‘बेहिसाब’ मसले हैं इस हंसती~खेलती दुनिया में।
अपने खुद के गढ़े हुए किरदार से जुदा हो के कहां जाऊंगा।।

आधा सा चांद टूट के बिखरा हुआ है धान के खाली खेतों में।
अब ये बता इस ‘गज़ब’ के मयकदे का हो के कहां जाऊंगा।।

गम है, खुशी है, कमी है, हंसी है, मुफलिसी है, तिजारत है।
चलो ठीक है, सब है, मगर इन सब का हो के कहां जाऊंगा।।

इक तेज दरिया बह रहा है पहाड़ के आड़े~तिरछे आंगन से।
मैं खारा पानी हूं, मैं तेरी काली आंखों से हो के कहां जाऊंगा।।

इक उम्र लगती है तमन्नाओं के बड़े~बड़े महल खड़े करने में।
मैं तेरे दिल की तिलस्मी दुनिया से जुदा हो के कहां जाऊंगा।।
💟💟

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, September 3, 2024

साजिश, ✍️ हेमंत कुमार

साजिश 💁💁

बादलों के पार हो रही थी ‘साजिश’ उसके खिलाफ।
हवाओं की अब हो रही थी ‘गवाही’ उसके खिलाफ।।

कल ही की बात थी ‘कलंदर’ था वो अपने जहां का।
आज हो रही थी खुलकर ‘बगावत’  उसके खिलाफ।।

यकीनन किसी और की ‘रोशनी’ से ‘रोशन’ था चांद।
दिन उगते ही हो गई सारी ‘रोशनाई’ उसके खिलाफ।।

जाने क्यों बेफिक्र था ‘जंगल’ अपनी ‘हदों’ को लेकर।
लकड़ी ‘कुल्हाड़ी’ से मिलते ही हो गई उसके खिलाफ।।

पैमाना क्या है इंसाफ के झूलते तराजू का क्या मालूम।
सिक्कों की खनक भी हो गई अब तो उसके खिलाफ।।

खुदा की बंदगी बे-ग़ैरत को भी दे सकती है एक मौका।
मगर किसी ‘मासूम’ की बद्दुआ ना हो उसके खिलाफ।।
🎭🎭

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, August 17, 2024

खिड़की!!!, ✍️ हेमंत कुमार

खिड़की!!! 🪟

उदास ‘मन’ से सुनसान गली में
टहलते वक्त ‘नज़र’ गली के कोने 
वाले ”घर” की एक खुली हुई 
खिड़की पर अनायास ही चली गई.....

एक विचार मन में आया कि 
क्यों खुली हुई होगी ये ‘खिड़की’.....

‘शायद’........

शायद कोई चोर घुसा हो 
चुपके से इस घर में.....??

शायद कोई रहता ही ना हो
इस घर में बरसों से.....??

शायद तेज़ हवा के झोंके से
खिड़की खुद ही खुल गई हो.....??

या फिर.....

शायद किसी के आने की उम्मीद
में खुली हुई हो ये खिड़की.....

आजकल के इस बंद खिड़की, 
दरवाजों और पर्दों के कठिन दौर में 
खुली हुई ‘खिड़कियां’ हमेशा इक
उम्मीद जगाती रहती हैं ‘बेजार दिलों में’.....
🤍

✍️ हेमंत कुमार

Sunday, July 7, 2024

दिल का करार, ✍️ हेमंत कुमार

दिल का करार 🌸🌧️

बारिशों का ये ‘मौसम’ फिर से ले आया है 
नमी ‘बंजर’ से पड़े हुए सारे के सारे दिलों में.....

फिर एक बार फूटने लगी हैं हरी-हरी कोपलें 
बेहद खामोश से खड़े इन झुलसे हुए दरखतों में.....

बारिशों के इस हसीन ‘मौसम’ में ‘मैं’ भी 
फिर इक बार, ढूंढने लगा हूं “दिल का करार”......

यादों के झरोखों को ‘आईनों’ में ढूंढने लगा हूं, 
अब मैं बारिश की बूंदों में सुकून ढूंढने में लगा हूं.....

रूठ कर जाने वालों को अब भुलाने लगा हूं, 
अब मैं खुद को ही फिर से ‘जीवंत’ करने में लगा हूं.....

सुबह-शाम नन्हें पौधों से अब बतियाने लगा हूं, 
अब मैं पुरानी ‘किताबों’ से हाथ मिलाने में लगा हूं.....

खेतों में चांद को देखकर अब मुस्कुराने लगा हूं, 
अब मैं बारिशों में जंगलों के नक्शे बनाने में लगा हूं.....

खारे पानी की हर इक बूंद को बहाने में लगा हूं, 
अब मैं बादलों की प्यास को दिल में समाने में लगा हूं......

अपने गुनाहों की अब फेहरिस्त बनाने लगा हूं, 
अब मैं बारिशों में ‘गुलमोहर’ के पेड़ उगाने में लगा हूं......

हर इक नए दिन का अब लुफ्त उठाने लगा हूं, 
अब मैं दोस्तों को ‘इश्क’ के किस्से सुनाने में लगा हूं......
❤️🥀

✍️ हेमंत कुमार

Wednesday, June 12, 2024

मैं तुम्हें याद आऊंगा, ✍️ हेमंत कुमार

मैं तुम्हें याद आऊंगा! 🙇‍♂️🙇‍♂️

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

सुबह की पहली हिचकी के साथ,
गर्मागर्म अदरक वाली चाय के साथ,
घर में बनती हुई किसी डिश के साथ,

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

मोबाइल की बजती घंटी के साथ,
हर बीतते दिन की खुमारी के साथ,
उठते-बैठते, हर बात-बेबात के साथ.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

जिम में, एरोबिक्स क्लास में, रेस्टोरेंट में,
बालकनी में, बिस्तर में, नींद में, 
हकीकत में, ख़्वाब में, जज़्बात में.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

तन्हाई में, रुसवाई में, 
शराफत में, नज़ाकत में
अपनों में, बेगानों में, 

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

इल्म की सच्ची दास्तानों में
किताबों में, रस्मों रिवाजों में, 
जंजालों में, नर्म उजालों में.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

भरी बरसातों में, टप टप करती बूंदों में,
दिसंबर की सर्दी में, घने, बहुत घने कोहरे में,
चिलचिलाती हुई गर्मी में, बर्फ से ठंडे कोल्डड्रिंक में.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

हर ढलती शाम में, हर शायर बदनाम में,
घटते बढ़ते बाजार में, नफे में, नुकसान में,
हर सच में, हर झूठ में, सियासत के घालमेल में...... 

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

सफेद/गुलाबी जूते पहनते वक्त
नीली जींस और उस पर साड़ी पहनते वक्त
बच्चों संग पार्क में बैडमिंटन खेलते वक्त

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

कलाई पर वही पुरानी घड़ी पहनते वक्त
होठों पर ध्यान से लिपस्टिक लगाते वक्त
रेबैन के चश्मे लगा कर मॉल में घूमते वक्त......

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

अकेले में सिसकियां लेते वक्त,
गाड़ी में बजती हुई गज़लें सुनते वक्त,
उलझे हुए बालों को सुलझाते वक्त,

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

किसी का हाथ पकड़कर चलते वक्त,
अरसे बाद खुद के वजूद को ढूंढते वक्त,
खुद की खुशबू को महसूस करते वक्त,

मैं तुम्हें याद आऊंगा....
मैं तुम्हें बार बार याद आऊंगा....

मैं एक बेतरतीब सा “ख़्वाब” हूं और ऐसे ख़्वाब
कब धर पाए हैं रूप ‘हकीकत’ का.....
वो तो बस ‘बह’ जाया करते हैं नम आंखों से
झरने बनकर, नींद बनकर, इंतजार बनकर.....
❤️

✍️ हेमंत कुमार

Wednesday, May 15, 2024

मैं और तुम, ✍️ हेमंत कुमार

मैं और तुम 👩‍❤️‍👨 🌛🌜

मैं यहां रोज चांद से बातें करता हूं.....
तुम भी वहां कभी चांद को तकती हो क्या??

मैं यहां रात-रात भर जागा करता हूं.....
तुम भी वहां कभी-कभी रातों में जगती हो क्या??

मैं यहां ख्वाबों में तुमसे मिला करता हूं.....
तुम भी वहां दर्पण को देख के सजती हो क्या??

मैं यहां ना जाने क्या-क्या सहा करता हूं.....
तुम भी वहां सुन्दर सपनों को तजती हो क्या??

मैं यहां रोज तेरा रास्ता तका करता हूं.....
तुम भी वहां कभी ख़्वाब सजा सकती हो क्या??

मैं यहां सिर्फ तुझ में ही डूबा रहता हूं.....
तुम भी वहां कभी आखों में पानी रखती हो क्या??

मैं यहां आजकल खुद में खुश रहता हूं.....
तुम भी वहां खिलखिला के बच्चों सी हंसती हो क्या??

मैं यहां नई-नई कविताऐं गढ़ता रहता हूं.....
तुम भी कहीं किसी दुनिया में सच में बसती हो क्या??
💌💌 

✍️ हेमंत कुमार

Sunday, April 14, 2024

मुकम्मल ख़्वाब, ✍️ हेमंत कुमार

मुकम्मल ख़्वाब 🌃🌃

सुनसान, अंधेरी रातों में एक “मुकम्मल” ख़्वाब देखा है हमने।
एक ‘जुगनू’ को अंधेरों में अपने सीने में चमकते देखा है हमने।

कहां जाहिर हो पाती हैं मन के गहरे तल में छिपी बातें अनजानों से।
इस बेबसी के आलम में भी अपने “दिल” को धड़कते देखा है हमने।।

टप-टप करती बारिश की बूंदें “सृजन” करती हैं मधुर संगीत का।
ऐसे मौसम में खुद को पुराने ख्यालों में सिमटते देखा है हमने।।

हर इक जज़्बात को सही समय पर कागज पर उतारना कहां मुमकिन है।
यादों के बेहद गहरे “ज्वार” के बीच शब्दों को बिखरते देखा है हमने।।

जब हर तरफ जगमग रोशनी में नहाए, हंसते मुस्कुराते नजारे हो।
ऐसे मंजर में “बेसबब” ही खुद को खुद से उलझते देखा है हमने।।

किसको नहीं चाहत होगी बेइंतिहा दौलत, शोहरत, ओहदों की इस जमाने में।
लेकिन, सिर्फ एक “जुगनू” के जगमगाने से खुद को निखरते देखा है हमने।।
😊😊

✍️ हेमंत कुमार

Monday, March 25, 2024

अरमान, ✍️ हेमंत कुमार

अरमान 💁💁

कितने ‘अरमानों’ पर पानी फिरा है, कितने सपने टूटे हैं। 
चाहने से ‘इश्क’ वालों के जात-पात के बंधन कब टूटे हैं।।

बुने हैं सपने जब भी किसी मह जबीन ने, सच में झूठे हैं।
टूट जाते हैं लोग खूब ऐंठ में, मगर मोहब्बत में कब टूटे हैं।।

जो ना बदले ‘वक़्त’ के साथ,लोग वो हमेशा पीछे छूटे हैं।
रास्ते जो चुन लिए अल्हड़ जवानी ने, वो रास्ते कब टूटे हैं।।

इधर वो फैसले पर अटल है, उधर इश्क के देवता रूठे हैं।
जीवन की ‘चौसर’ है ये, भ्रम यहां ‘कौरवों’ के कब टूटे हैं।।

सीने में ‘दरिया’ समेटे बैठा था वो, जिसके ‘आंसू’ फूटे हैं। 
कोई कितनी भी ‘हिम्मत’ जोड़े, कंकड़ से पर्वत कब टूटे हैं।।

हालत ठीक नही है ‘माना’ पर ‘रब’ के मिलाए कब छूटे हैं।
लाख चाह ले कोई, ‘रब’ चाहे तो, अंबर के तारे कब टूटे हैं।।
🚸🚸

✍️ हेमंत कुमार

Friday, March 8, 2024

स्त्री, ✍️ हेमंत कुमार


#स्त्री 🥀🐞

माना पग-पग पर हैं बंधन
हर जिम्मेदारी भारी.......
पर तुमने हर बंधन को...... 
........कदम ताल बनाया है!!!

माना सृजन से समर्पण तक
हर जिम्मेदारी प्यारी.......
पर तुमने सूझ बूझ से......
.......अपना मुकाम बनाया है!!!

माना भक्ति से परम शक्ति तक
हर जिम्मेदारी न्यारी.......
पर तुमने अपने बलबूते......
.......एक अलग जहां बनाया है!!!

स्त्री.....
तुम आजाद थी, हो और रहोगी....
बहते पानी को कब कोई रोक पाया है?
और जब~जब भी हिमाकत हुई है....जलजला आया है!!! 
❤️

✍️ हेमन्त कुमार 

Tuesday, March 5, 2024

तुम, ✍️ हेमंत कुमार

तुम 💐💐

गुलाबी सा मौसम, गुलाबी से ख़्वाब, गुलाबी गुलाबी सी तुम....

खिले खिले से फूल, खिली खिली सी धूप, खिली खिली सी तुम....

लहराती हुई फसलें, लहराती हुई जुल्फें, लहराती हुई सी तुम....

महकते हुए नजारे, महकते हुए अहसास, महकती हुई सी तुम....

हंसते हुए ‘रास्ते’, हंसते हुए ‘दरखत’, ‘हंसती’ हुई सी तुम....

नाचते हुए मोर हर और, नाचते हुए गुलमोहर, नाचती हुई सी तुम....

गुनगुनाते हुए भंवरे, गुनगुनाती हुई तितलियां, गुनगुनाती हुई सी तुम....
🥀🦋

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, February 20, 2024

आधी अधुरी दास्तान, ✍️ हेमंत कुमार

आधी अधुरी दास्तान 📋✍️

कुछ इस तरहा से एक किस्सा मेरी ‘हकीकत’ बनने लगा।
बस अब तो इक ‘ख़्वाब’ मेरे जीने की ‘वजह’ बनने लगा।।

कभी छूटी थी किसी ‘सफर’ में एक आधी-अधूरी दास्तान।
अब तो बस वो ‘राह-गुजर’ खुद एक ‘दास्तान’ बनने लगा।।

कतरा-कतरा कर के घिस रहा था वो यूं जिंदगी के सफर में।
बरसों बाद एक ‘लकड़ी’ का टुकड़ा अब ‘संदल’ बनने लगा।।

कुछ ‘रंग’ अभी भी मेरे किरदार में भरे जाने बाकि थे शायद।
इस तरहा एक रंग~रेज मेरी ‘कहानी’ का हिस्सा बनने लगा।।

ये क्या हो रहा है खुदाया, ये कौन सा ‘ख़्वाब’ देख रहा हूं मैं।
कुछ ‘कदम’ साथ चलते ही पल में वो ‘हमसफर’ बनने लगा।।

कभी जाहिर नहीं किए ‘जज़्बात’ अरसे से ‘खाली’ पड़े दिल ने।
धरती को प्यासा देख आसमां में खुद एक ‘बादल’ बनने लगा।।
❤️💁

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, February 10, 2024

बस यूं ही किसी दिन, ✍️ हेमंत कुमार

बस यूं ही किसी दिन 💁💁


एक ख्याल अक्सर मेरे जहन में आता है 

और कर देता मेरे हृदय को प्रफुल्लित

कि यूं ही किसी दिन मिलना हो हमारा तुम्हारा 

ये स्त्री~पुरुष के तमाम भेदभाव भुला कर....


हम बैठेंगे किसी बेहद नितांत ‘एकांत’ में

दीन दुनिया के सब बुनियादी ख्यालों से परे

बस अपनी ही बुनी हुई किसी ‘दुनिया’ में

दुनिया के तमाम मसलों से बेखबर होकर....


तुम एकदम ‘खाली हाथ’ चले आना

बस ले आना अपने साथ में थोड़ा सा वक़्त

और थोड़ी सी मुस्कान चंचल ‘चेहरे’ पर

बस उगा लाना एक ‘उजला’ चांद माथे पर....


कि जिस्मानी दुनिया से परे भी हैं हम कुछ

ये ‘महसूस’ कर सकें धड़कते ‘दिलों’ में,

लम्बी, गहरी ‘ख़ामोशी’ के बीच छेड़ सकें

धीमे-धीमे सुर में संगीत की मधुर स्वर लहरियां....


कि तुम्हारा मेरे कांधे पर सर रख के बैठ जाना

जैसे तुमने कर दिया हो अपना सबकुछ समर्पित

और मेरा भरोसे से थाम लेना ‘हाथ’ तुम्हारा

जैसे ये जोड़, बेजोड़ है अब अनंत काल के लिए....


कि ये प्रेम की खुशबू महकती रहे इस चमन में

जब भी निराशाओं के बादल चारों ओर मंडराने लगें

कि प्रेम की बूंदें झट से बरसने लगे आसमानों से

ताकि कोई आशंकित ना हो प्रेम में बह जाने से पहले....


ये मिलना ‘यूं’ भी बेहद जरूरी है हमारा तुम्हारा

कि नहीं मिल सकते चाहकर भी धरती और आकाश

कि नहीं मिल सकते हैं वो तमाम अतीत के प्रेमी

जिनकी रगों में कभी बहता था रक्त रूप में अथाह प्रेम....


कि प्रेम को दे दिया गया है ‘विकृत’ रूप जमाने में

कि प्रेम हो चुका है अभिशापित, अलोकतांत्रिक, अछूत

घृणा का ‘बीज’ चुपके से रोप दिया गया है दिलों में 

प्रेम को बाज़ार ने झोंक दिया है व्यापार में मुनाफे के लिए....


ये मिलना ‘यूं’ भी बेहद जरूरी है हमारा तुम्हारा

कि हमारे हिस्से का प्रेम परिपक्व होकर अमृत बन सके

कि घृणा के बीजों को भी ‘प्रेम’ से सींचा जा सके

ताकि ये जाना जा सके कि जीवन और मृत्यु के बीच एक मात्र सत्य ‘प्रेम’ है....

❣️


✍️ हेमंत कुमार

Thursday, January 18, 2024

कहानी अनकही, ✍️ हेमंत कुमार

कहानी अनकही 🎭🎭

खुशनुमा सा मौसम और वो पहली ‘मुलाकात’ अपनी।
बढ़ने लगी ‘नजदीकियां’ और नई~नई ‘दोस्ती’ अपनी।।

बदलने लगे वो मौसम और बढ़ने लगी ‘दोस्ती’ अपनी।
आने लगी सर्दी और गहराने लगी फिर ‘दोस्ती’ अपनी।।

चढ़ने लगी कोहरे की चादर, निखरने लगी हस्ती अपनी।
पर पता ना था कि खत्म होने वाली है  ये ‘मस्ती’ अपनी।।

फिर, ना तुम नजर आए ना फिर कभी बात हुई अपनी।
खैर, नहीं हुई खत्म फिर भी ये छोटी सी दुनिया अपनी।।

चाहतों को मन में मसोस कर नई ‘शुरुआत’ हुई अपनी।
पंख लगने लगे ‘उम्मीदों’ को,भूल गए हम कश्ती अपनी।।

बदलते वक़्त ने, रफ्तार से, फिर बदली किस्मत अपनी।
यादों का खजाना लेकर फिर हुई एक मुलाकात अपनी।।

चाँद की मध्यम सी रोशनी में वो खामोश सी बातें अपनी।
जनवरी की सर्द सी हवाऐं और ये ‘खुशनुमा’ यादें अपनी।।

अब और क्या बताऊं? तुम्हें मालूम तो है ‘कहानी’ अपनी।
ये सारी दुनिया बेगानी है बस ये ‘कहानी’ ही तो है अपनी।।
🍁🍁

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, January 6, 2024

ये सर्द मौसम, ✍️ हेमंत कुमार

ये सर्द मौसम ⛄⛄

ये सर्द मौसम, ये लंबी रातें,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में वजूद में 
आया था मैं.....

ये कोहरा, ये ओस की बूंदें,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में मेरे हिस्से 
में आए थे तुम.....

ये नर्म धूप, ये ठंडी हवाएं,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में महसूस हुआ
था प्रेम का पहला स्पर्श.....

ये नीला स्वेटर, ये सफेद शर्ट,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में पिलाई गई 
थी वो पहली कॉफी.....

ये देर तक जागना, ये पढ़ना,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में उड़ी थी नींद
नींद से जागने को.....

ये रंग बिरंगे फूल, ये भंवरे,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में छूआ था
मैंने तुम्हारे मन को.....

ये आधा दिसंबर, ये जनवरी,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में साल दर साल 
नव अंकुरित होता हूं मैं.....
🧑‍🎤🧑‍🎤

✍️ हेमंत कुमार

बेचैन दिल की तमन्ना, ✍️ हेमन्त कुमार

बेचैन दिल की तमन्ना 🙇‍♂️🙇‍♂️ बेचैन दिल की तमन्ना है कि इस दिल को करार आ जाए। अब वो वक्त बीत चुका है, बस ये दिल इतना समझ जाए।। ...