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Saturday, December 31, 2022

एक मासूम परिंदा, ✍️ हेमंत कुमार

एक मासूम परिंदा 🔖🔖

पेड़ की ऊंची शाख पर जा बैठा, एक ‘मासूम’ परिंदा वो।
अंदाजे से कहां पता लगता है कि जंगल में आग लगी है।।

अपनों से भी अब जरा—सा बच के ही चलने लगा है वो।
जब से पता लगा है उसे कि ‘सब’ रिश्तों में आग लगी है।।

सिगरेट फूंक~फूंक के सब धुआं~धुआं करता रहा है वो।
अब जा के मालूम हुआ है उसे कि फेफड़ों में आग लगी है।।

बड़ी-बड़ी खबरें लगी है कि बड़े ही ‘मजे’ से जी रहा है वो।
किसी को क्या पता कि बाजार में कीमतों में आग लगी है।।

बीच मझ–धार में ही अकेला छोड़ के चला गया है मुझे वो।
तब जा के अहसास हुआ कि ‘दिल’ में कैसी आग लगी है।।

सब कुछ जगमग नज़र आ रहा था, जब आया शहर में वो।
दूर से कहां पता लगता है कि अजनबी शहर में आग लगी है।।
🌋🌋

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...