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Thursday, January 18, 2024

कहानी अनकही, ✍️ हेमंत कुमार

कहानी अनकही 🎭🎭

खुशनुमा सा मौसम और वो पहली ‘मुलाकात’ अपनी।
बढ़ने लगी ‘नजदीकियां’ और नई~नई ‘दोस्ती’ अपनी।।

बदलने लगे वो मौसम और बढ़ने लगी ‘दोस्ती’ अपनी।
आने लगी सर्दी और गहराने लगी फिर ‘दोस्ती’ अपनी।।

चढ़ने लगी कोहरे की चादर, निखरने लगी हस्ती अपनी।
पर पता ना था कि खत्म होने वाली है  ये ‘मस्ती’ अपनी।।

फिर, ना तुम नजर आए ना फिर कभी बात हुई अपनी।
खैर, नहीं हुई खत्म फिर भी ये छोटी सी दुनिया अपनी।।

चाहतों को मन में मसोस कर नई ‘शुरुआत’ हुई अपनी।
पंख लगने लगे ‘उम्मीदों’ को,भूल गए हम कश्ती अपनी।।

बदलते वक़्त ने, रफ्तार से, फिर बदली किस्मत अपनी।
यादों का खजाना लेकर फिर हुई एक मुलाकात अपनी।।

चाँद की मध्यम सी रोशनी में वो खामोश सी बातें अपनी।
जनवरी की सर्द सी हवाऐं और ये ‘खुशनुमा’ यादें अपनी।।

अब और क्या बताऊं? तुम्हें मालूम तो है ‘कहानी’ अपनी।
ये सारी दुनिया बेगानी है बस ये ‘कहानी’ ही तो है अपनी।।
🍁🍁

✍️ हेमंत कुमार

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