ये क्या हो रहा है, ये कैसी बारिश बरस रही है।
जैसे-जैसे भीग रहा हूं, वैसे-वैसे निखर रहा हूं।।
वो कौन सी मिट्टी का बना है, वो कैसा पागल है।
तैर सकता है, फिर भी दरिया के किनारे खड़ा है।।
कैसे कैसे इल्जाम लगे हैं, उस बूढ़े से बरगद पर।
जो भी सफर में थका, वहीं आराम करता रहा है।।
दुश्वारियां, सारी अपने ही हिस्से में लेता रहा है वो।
दोस्त है वो, उसे दोस्ती का हुनर निभाना आता है।।
रेत सी हो गई है जिंदगी बस फिसलती जा रही है।
पहाड़ सा हो गया है वो शख्स खामोश ही रहता है।।
अब किधर ले जायेंगे ये मौसम,इनकी तो ये ही जानें।
हमारा क्या, हम तो उधर ही चल देंगे, जिधर वो चाहे।।
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✍️ हेमंत कुमार