उम्मीद से ज्यादा 🌠🌠
बारिशों सा है इश्क उसका, जब भी बरसा, बेहिसाब बरसा।
इतना कभी ना बरसा था वो जितना के अब के बरस बरसा।।
सबको मालूम है, कौन किसको यूहीं बेसबब चाहता है यहां।
शुक्रगुजार हूं उसका वो हमेशा मेरी उम्मीद से ज्यादा बरसा।।
गर्दिश में, दर्द में, मुफलिसी में, सब साथ छोड़ जाते हैं यहां।
कितना पाबंद है वो अपने वादे का, गमों में आखों से बरसा।।
बहुत दूर जा कर के, कब कोई लौट के वापस आया है यहां।
जब कभी भी आई याद उसकी वो हमेशा बादलों से बरसा।।
गुजरे वक़्त में बहुत कम आमना सामना हुआ है उससे मेरा।
गमों की जरा सी भी आहट हुई, तो वो फुहार बन के बरसा।।
‘मौसमों’ को आखिर बदलना ही होता है और वो बदल गए।
खैर जब भी पुकारा मैने उसे वो आ के मेरे ख्वाबों में बरसा।।
तय हुआ था करार हमारे उसके बीच कभी ना बिछड़ने का।
जैसे ही पुकारा उसको मैंने, मचल के वो मेरी छत पे बरसा।।
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✍️ हेमंत कुमार