छांव सी तुम, उसमें सुकून पाता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
नदी सी तुम, उसमें मोती ढूंढता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।
धूप सी तुम, उसमें मुस्कुराता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
बादल सी तुम, उसमें झूमता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।
प्यास सी तुम, उसमें नमी टटोलता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
नींद सी तुम, उसमें ख़्वाब खोजता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।
कोहरे सी तुम, उसमें गुनगुनाता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
रात सी तुम, उसमें ‘टिमटिमाता’ हुआ कोई दीवाना सा मैं।।
नशे सी तुम, उसमें ‘मदहोश’ हुआ कोई दीवाना सा मैं।
शीशे सी तुम, उसमें निहारता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।
आज सी तुम, उसमें कल को ढूंढता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
किताब सी तुम, उसमें प्रेम खोजता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।
गुलाब सी तुम, उसमें इत्र सा महकता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
बारिश सी तुम, उसमें बूंदों सा बरसता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।
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✍️ हेमंत कुमार