मैं बांध के आया था
एक धागा मन्नत का....
पीपल के पेड़ पर....
जहाँ मुझ से पहले
मांगी जा चुकी थी
हजारों मन्नतें....
लेकिन मेरा हमेशा
अटूट विश्वास रहा है....
खुद पर, तुम पर
और खुदा पर....
उस दिन के बाद से
मैंने पीछे मुड़ के
नहीं देखा....
मुझे वो सब मिला
जो मैंने चाहा था
सिवाय ‘तुम्हारे’....
उस मन्नत में मैंने
बस तुम्हें मांगा था....
लेकिन मुझे मिला बस
इंतजार, एक ‘अंतहीन’
इंतजार....
फिर तो जैसे मन्नतों
से भरोसा ही उठ गया....
अब मैं बस खुद से
खुद ही मांग लेता हूं....
थोड़ी सी फुर्सत,
थोड़ा सा सुकून, थोड़ी
तन्हाई, थोड़ा इंतजार....
और उकेर देता हूं अपने
मन के उद्गारों को कागज़ पर....
ये मन्नतों के धागे मुझे
कभी नहीं पहुंचा पाएंगे
तुम तक....
लेकिन मेरी कविताएं
जरूर पहुंचेंगी तुम्हारी
रूह तक और हो जाएंगी
अमर सदा-सदा के लिए....
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✍️ हेमंत कुमार