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Wednesday, June 12, 2024

मैं तुम्हें याद आऊंगा, ✍️ हेमंत कुमार

मैं तुम्हें याद आऊंगा! 🙇‍♂️🙇‍♂️

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

सुबह की पहली हिचकी के साथ,
गर्मागर्म अदरक वाली चाय के साथ,
घर में बनती हुई किसी डिश के साथ,

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

मोबाइल की बजती घंटी के साथ,
हर बीतते दिन की खुमारी के साथ,
उठते-बैठते, हर बात-बेबात के साथ.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

जिम में, एरोबिक्स क्लास में, रेस्टोरेंट में,
बालकनी में, बिस्तर में, नींद में, 
हकीकत में, ख़्वाब में, जज़्बात में.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

तन्हाई में, रुसवाई में, 
शराफत में, नज़ाकत में
अपनों में, बेगानों में, 

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

इल्म की सच्ची दास्तानों में
किताबों में, रस्मों रिवाजों में, 
जंजालों में, नर्म उजालों में.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

भरी बरसातों में, टप टप करती बूंदों में,
दिसंबर की सर्दी में, घने, बहुत घने कोहरे में,
चिलचिलाती हुई गर्मी में, बर्फ से ठंडे कोल्डड्रिंक में.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

हर ढलती शाम में, हर शायर बदनाम में,
घटते बढ़ते बाजार में, नफे में, नुकसान में,
हर सच में, हर झूठ में, सियासत के घालमेल में...... 

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

सफेद/गुलाबी जूते पहनते वक्त
नीली जींस और उस पर साड़ी पहनते वक्त
बच्चों संग पार्क में बैडमिंटन खेलते वक्त

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

कलाई पर वही पुरानी घड़ी पहनते वक्त
होठों पर ध्यान से लिपस्टिक लगाते वक्त
रेबैन के चश्मे लगा कर मॉल में घूमते वक्त......

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

अकेले में सिसकियां लेते वक्त,
गाड़ी में बजती हुई गज़लें सुनते वक्त,
उलझे हुए बालों को सुलझाते वक्त,

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

किसी का हाथ पकड़कर चलते वक्त,
अरसे बाद खुद के वजूद को ढूंढते वक्त,
खुद की खुशबू को महसूस करते वक्त,

मैं तुम्हें याद आऊंगा....
मैं तुम्हें बार बार याद आऊंगा....

मैं एक बेतरतीब सा “ख़्वाब” हूं और ऐसे ख़्वाब
कब धर पाए हैं रूप ‘हकीकत’ का.....
वो तो बस ‘बह’ जाया करते हैं नम आंखों से
झरने बनकर, नींद बनकर, इंतजार बनकर.....
❤️

✍️ हेमंत कुमार

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