बेचैन दिल की तमन्ना है कि इस दिल को करार आ जाए।
अब वो वक्त बीत चुका है, बस ये दिल इतना समझ जाए।।
ना वो अब मोहब्बतों का सिलसिला रहा ना वो बहारें रही।
अब तो ऐसा साकी चाहिए जो बिन बोले सब समझ जाए।।
दिन लुढ़क रहा है आहिस्ता-आहिस्ता शाम के आगोश में।
रात की गहरी ‘खामोशी’ में मद्धम सा संगीत बजाया जाए।।
बेवजह आस्तीन में क्यों छुपाकर रखना जहरीले सांपों को।
भनक लगते ही ‘बीन’ बजाकर सपेरों के हवाले किया जाए।।
ढलान आते ही जल्दी मुकम्मल हो जाएगा जिंदगी का सफर।
यकीनन समय रहते सारे आधे-अधूरे काम निपटा लिए जाए।।
दो-जहाँ की सैर करके वापस आ गए हैं हम अपने नशेमन में।
कश्ती को वापस अपने सफर पर समंदर में लौटने दिया जाए।।
🫡🫡
✍️ हेमन्त कुमार
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