माना पग-पग पर हैं बंधन
हर जिम्मेदारी न्यारी.......
पर तुमने हर बंधन को......
........कदम ताल बनाया है।
माना सृजन से समर्पण तक
हर जिम्मेदारी प्यारी.......
पर तुमने सूझ बूझ से......
.......अपना मुकाम बनाया है।
माना भक्ति से परम शक्ति तक
हर जिम्मेदारी भारी.......
पर तुमने अपने बलबूते......
.......एक अलग जहां बनाया है।
स्त्री.....
तुम आजाद थी, हो और रहोगी....
बहते पानी को कब कोई रोक पाया है?
और जब-जब भी हिमाकत हुई है....जलजला आया है। 😊💐
✍️ हेमंत कुमार