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Sunday, April 14, 2024

मुकम्मल ख़्वाब, ✍️ हेमंत कुमार

मुकम्मल ख़्वाब 🌃🌃

सुनसान, अंधेरी रातों में एक “मुकम्मल” ख़्वाब देखा है हमने।
एक ‘जुगनू’ को अंधेरों में अपने सीने में चमकते देखा है हमने।

कहां जाहिर हो पाती हैं मन के गहरे तल में छिपी बातें अनजानों से।
इस बेबसी के आलम में भी अपने “दिल” को धड़कते देखा है हमने।।

टप-टप करती बारिश की बूंदें “सृजन” करती हैं मधुर संगीत का।
ऐसे मौसम में खुद को पुराने ख्यालों में सिमटते देखा है हमने।।

हर इक जज़्बात को सही समय पर कागज पर उतारना कहां मुमकिन है।
यादों के बेहद गहरे “ज्वार” के बीच शब्दों को बिखरते देखा है हमने।।

जब हर तरफ जगमग रोशनी में नहाए, हंसते मुस्कुराते नजारे हो।
ऐसे मंजर में “बेसबब” ही खुद को खुद से उलझते देखा है हमने।।

किसको नहीं चाहत होगी बेइंतिहा दौलत, शोहरत, ओहदों की इस जमाने में।
लेकिन, सिर्फ एक “जुगनू” के जगमगाने से खुद को निखरते देखा है हमने।।
😊😊

✍️ हेमंत कुमार

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