उससे मत पूछो हालात शहर के, नादान है वो।
सियासतदानों से, दिन के उजाले में मिलता है।।
हर तरफ रंगीनियों का उजाला हैं, परेशान है वो।
जिस ओर भी चलता, स्याह अंधेरों से मिलता है।।
उसे बनाना था अपना मुक्कदर, घबराया है वो।
जिससे भी मिलना चाहता, बेरोजगार मिलता है।।
बेईमानियों का सैलाब आया है, खौफजदा है वो।
जिधर भी जाए, हर तरफ उसे एक ठग मिलता है।।
पंख लगने थे उसके होंसलों को, बदहवास है वो।
कमाल का शहर है, हर गली में एक गिद्ध मिलता है।।
प्यार उसके नसीब में है ही नहीं, मुतमइन है वो।
जो भी मिलता है उसे, खंजर हाथ में लेके मिलता है।।
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✍️ हेमंत कुमार