कुछ इस तरहा से एक किस्सा मेरी ‘हकीकत’ बनने लगा।
बस अब तो इक ‘ख़्वाब’ मेरे जीने की ‘वजह’ बनने लगा।।
कभी छूटी थी किसी ‘सफर’ में एक आधी-अधूरी दास्तान।
अब तो बस वो ‘राह-गुजर’ खुद एक ‘दास्तान’ बनने लगा।।
कतरा-कतरा कर के घिस रहा था वो यूं जिंदगी के सफर में।
बरसों बाद एक ‘लकड़ी’ का टुकड़ा अब ‘संदल’ बनने लगा।।
कुछ ‘रंग’ अभी भी मेरे किरदार में भरे जाने बाकि थे शायद।
इस तरहा एक रंग~रेज मेरी ‘कहानी’ का हिस्सा बनने लगा।।
ये क्या हो रहा है खुदाया, ये कौन सा ‘ख़्वाब’ देख रहा हूं मैं।
कुछ ‘कदम’ साथ चलते ही पल में वो ‘हमसफर’ बनने लगा।।
कभी जाहिर नहीं किए ‘जज़्बात’ अरसे से ‘खाली’ पड़े दिल ने।
धरती को प्यासा देख आसमां में खुद एक ‘बादल’ बनने लगा।।
❤️💁
✍️ हेमंत कुमार