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Friday, March 8, 2024

स्त्री, ✍️ हेमंत कुमार

स्त्री 🦋🌹

माना पग-पग पर हैं बंधन
हर जिम्मेदारी न्यारी.......
पर तुमने हर बंधन को...... 
........कदम ताल बनाया है। 

माना सृजन से समर्पण तक
हर जिम्मेदारी प्यारी.......
पर तुमने सूझ बूझ से......
.......अपना मुकाम बनाया है।

माना भक्ति से परम शक्ति तक
हर जिम्मेदारी भारी.......
पर तुमने अपने बलबूते......
.......एक अलग जहां बनाया है।

स्त्री.....
तुम आजाद थी, हो और रहोगी....
बहते पानी को कब कोई रोक पाया है?
और जब-जब भी हिमाकत हुई है....जलजला आया है। 😊💐

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, March 5, 2024

तुम, ✍️ हेमंत कुमार

तुम 💐💐

गुलाबी सा मौसम, गुलाबी से ख़्वाब, गुलाबी गुलाबी सी तुम....

खिले खिले से फूल, खिली खिली सी धूप, खिली खिली सी तुम....

लहराती हुई फसलें, लहराती हुई जुल्फें, लहराती हुई सी तुम....

महकते हुए नजारे, महकते हुए अहसास, महकती हुई सी तुम....

हंसते हुए ‘रास्ते’, हंसते हुए ‘दरखत’, ‘हंसती’ हुई सी तुम....

नाचते हुए मोर हर और, नाचते हुए गुलमोहर, नाचती हुई सी तुम....

गुनगुनाते हुए भंवरे, गुनगुनाती हुई तितलियां, गुनगुनाती हुई सी तुम....
🥀🦋

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, February 20, 2024

आधी अधुरी दास्तान, ✍️ हेमंत कुमार

आधी अधुरी दास्तान 📋✍️

कुछ इस तरहा से एक किस्सा मेरी ‘हकीकत’ बनने लगा।
बस अब तो इक ‘ख़्वाब’ मेरे जीने की ‘वजह’ बनने लगा।।

कभी छूटी थी किसी ‘सफर’ में एक आधी-अधूरी दास्तान।
अब तो बस वो ‘राह-गुजर’ खुद एक ‘दास्तान’ बनने लगा।।

कतरा-कतरा कर के घिस रहा था वो यूं जिंदगी के सफर में।
बरसों बाद एक ‘लकड़ी’ का टुकड़ा अब ‘संदल’ बनने लगा।।

कुछ ‘रंग’ अभी भी मेरे किरदार में भरे जाने बाकि थे शायद।
इस तरहा एक रंग~रेज मेरी ‘कहानी’ का हिस्सा बनने लगा।।

ये क्या हो रहा है खुदाया, ये कौन सा ‘ख़्वाब’ देख रहा हूं मैं।
कुछ ‘कदम’ साथ चलते ही पल में वो ‘हमसफर’ बनने लगा।।

कभी जाहिर नहीं किए ‘जज़्बात’ अरसे से ‘खाली’ पड़े दिल ने।
धरती को प्यासा देख आसमां में खुद एक ‘बादल’ बनने लगा।।
❤️💁

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, February 10, 2024

बस यूं ही किसी दिन, ✍️ हेमंत कुमार

बस यूं ही किसी दिन 💁💁


एक ख्याल अक्सर मेरे जहन में आता है 

और कर देता मेरे हृदय को प्रफुल्लित

कि यूं ही किसी दिन मिलना हो हमारा तुम्हारा 

ये स्त्री~पुरुष के तमाम भेदभाव भुला कर....


हम बैठेंगे किसी बेहद नितांत ‘एकांत’ में

दीन दुनिया के सब बुनियादी ख्यालों से परे

बस अपनी ही बुनी हुई किसी ‘दुनिया’ में

दुनिया के तमाम मसलों से बेखबर होकर....


तुम एकदम ‘खाली हाथ’ चले आना

बस ले आना अपने साथ में थोड़ा सा वक़्त

और थोड़ी सी मुस्कान चंचल ‘चेहरे’ पर

बस उगा लाना एक ‘उजला’ चांद माथे पर....


कि जिस्मानी दुनिया से परे भी हैं हम कुछ

ये ‘महसूस’ कर सकें धड़कते ‘दिलों’ में,

लम्बी, गहरी ‘ख़ामोशी’ के बीच छेड़ सकें

धीमे-धीमे सुर में संगीत की मधुर स्वर लहरियां....


कि तुम्हारा मेरे कांधे पर सर रख के बैठ जाना

जैसे तुमने कर दिया हो अपना सबकुछ समर्पित

और मेरा भरोसे से थाम लेना ‘हाथ’ तुम्हारा

जैसे ये जोड़, बेजोड़ है अब अनंत काल के लिए....


कि ये प्रेम की खुशबू महकती रहे इस चमन में

जब भी निराशाओं के बादल चारों ओर मंडराने लगें

कि प्रेम की बूंदें झट से बरसने लगे आसमानों से

ताकि कोई आशंकित ना हो प्रेम में बह जाने से पहले....


ये मिलना ‘यूं’ भी बेहद जरूरी है हमारा तुम्हारा

कि नहीं मिल सकते चाहकर भी धरती और आकाश

कि नहीं मिल सकते हैं वो तमाम अतीत के प्रेमी

जिनकी रगों में कभी बहता था रक्त रूप में अथाह प्रेम....


कि प्रेम को दे दिया गया है ‘विकृत’ रूप जमाने में

कि प्रेम हो चुका है अभिशापित, अलोकतांत्रिक, अछूत

घृणा का ‘बीज’ चुपके से रोप दिया गया है दिलों में 

प्रेम को बाज़ार ने झोंक दिया है व्यापार में मुनाफे के लिए....


ये मिलना ‘यूं’ भी बेहद जरूरी है हमारा तुम्हारा

कि हमारे हिस्से का प्रेम परिपक्व होकर अमृत बन सके

कि घृणा के बीजों को भी ‘प्रेम’ से सींचा जा सके

ताकि ये जाना जा सके कि जीवन और मृत्यु के बीच एक मात्र सत्य ‘प्रेम’ है....

❣️


✍️ हेमंत कुमार

Thursday, January 18, 2024

कहानी अनकही, ✍️ हेमंत कुमार

कहानी अनकही 🎭🎭

खुशनुमा सा मौसम और वो पहली ‘मुलाकात’ अपनी।
बढ़ने लगी ‘नजदीकियां’ और नई~नई ‘दोस्ती’ अपनी।।

बदलने लगे वो मौसम और बढ़ने लगी ‘दोस्ती’ अपनी।
आने लगी सर्दी और गहराने लगी फिर ‘दोस्ती’ अपनी।।

चढ़ने लगी कोहरे की चादर, निखरने लगी हस्ती अपनी।
पर पता ना था कि खत्म होने वाली है  ये ‘मस्ती’ अपनी।।

फिर, ना तुम नजर आए ना फिर कभी बात हुई अपनी।
खैर, नहीं हुई खत्म फिर भी ये छोटी सी दुनिया अपनी।।

चाहतों को मन में मसोस कर नई ‘शुरुआत’ हुई अपनी।
पंख लगने लगे ‘उम्मीदों’ को,भूल गए हम कश्ती अपनी।।

बदलते वक़्त ने, रफ्तार से, फिर बदली किस्मत अपनी।
यादों का खजाना लेकर फिर हुई एक मुलाकात अपनी।।

चाँद की मध्यम सी रोशनी में वो खामोश सी बातें अपनी।
जनवरी की सर्द सी हवाऐं और ये ‘खुशनुमा’ यादें अपनी।।

अब और क्या बताऊं? तुम्हें मालूम तो है ‘कहानी’ अपनी।
ये सारी दुनिया बेगानी है बस ये ‘कहानी’ ही तो है अपनी।।
🍁🍁

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...