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Saturday, February 10, 2024

बस यूं ही किसी दिन, ✍️ हेमंत कुमार

बस यूं ही किसी दिन 💁💁


एक ख्याल अक्सर मेरे जहन में आता है 

और कर देता मेरे हृदय को प्रफुल्लित

कि यूं ही किसी दिन मिलना हो हमारा तुम्हारा 

ये स्त्री~पुरुष के तमाम भेदभाव भुला कर....


हम बैठेंगे किसी बेहद नितांत ‘एकांत’ में

दीन दुनिया के सब बुनियादी ख्यालों से परे

बस अपनी ही बुनी हुई किसी ‘दुनिया’ में

दुनिया के तमाम मसलों से बेखबर होकर....


तुम एकदम ‘खाली हाथ’ चले आना

बस ले आना अपने साथ में थोड़ा सा वक़्त

और थोड़ी सी मुस्कान चंचल ‘चेहरे’ पर

बस उगा लाना एक ‘उजला’ चांद माथे पर....


कि जिस्मानी दुनिया से परे भी हैं हम कुछ

ये ‘महसूस’ कर सकें धड़कते ‘दिलों’ में,

लम्बी, गहरी ‘ख़ामोशी’ के बीच छेड़ सकें

धीमे-धीमे सुर में संगीत की मधुर स्वर लहरियां....


कि तुम्हारा मेरे कांधे पर सर रख के बैठ जाना

जैसे तुमने कर दिया हो अपना सबकुछ समर्पित

और मेरा भरोसे से थाम लेना ‘हाथ’ तुम्हारा

जैसे ये जोड़, बेजोड़ है अब अनंत काल के लिए....


कि ये प्रेम की खुशबू महकती रहे इस चमन में

जब भी निराशाओं के बादल चारों ओर मंडराने लगें

कि प्रेम की बूंदें झट से बरसने लगे आसमानों से

ताकि कोई आशंकित ना हो प्रेम में बह जाने से पहले....


ये मिलना ‘यूं’ भी बेहद जरूरी है हमारा तुम्हारा

कि नहीं मिल सकते चाहकर भी धरती और आकाश

कि नहीं मिल सकते हैं वो तमाम अतीत के प्रेमी

जिनकी रगों में कभी बहता था रक्त रूप में अथाह प्रेम....


कि प्रेम को दे दिया गया है ‘विकृत’ रूप जमाने में

कि प्रेम हो चुका है अभिशापित, अलोकतांत्रिक, अछूत

घृणा का ‘बीज’ चुपके से रोप दिया गया है दिलों में 

प्रेम को बाज़ार ने झोंक दिया है व्यापार में मुनाफे के लिए....


ये मिलना ‘यूं’ भी बेहद जरूरी है हमारा तुम्हारा

कि हमारे हिस्से का प्रेम परिपक्व होकर अमृत बन सके

कि घृणा के बीजों को भी ‘प्रेम’ से सींचा जा सके

ताकि ये जाना जा सके कि जीवन और मृत्यु के बीच एक मात्र सत्य ‘प्रेम’ है....

❣️


✍️ हेमंत कुमार

Thursday, January 18, 2024

कहानी अनकही, ✍️ हेमंत कुमार

कहानी अनकही 🎭🎭

खुशनुमा सा मौसम और वो पहली ‘मुलाकात’ अपनी।
बढ़ने लगी ‘नजदीकियां’ और नई~नई ‘दोस्ती’ अपनी।।

बदलने लगे वो मौसम और बढ़ने लगी ‘दोस्ती’ अपनी।
आने लगी सर्दी और गहराने लगी फिर ‘दोस्ती’ अपनी।।

चढ़ने लगी कोहरे की चादर, निखरने लगी हस्ती अपनी।
पर पता ना था कि खत्म होने वाली है  ये ‘मस्ती’ अपनी।।

फिर, ना तुम नजर आए ना फिर कभी बात हुई अपनी।
खैर, नहीं हुई खत्म फिर भी ये छोटी सी दुनिया अपनी।।

चाहतों को मन में मसोस कर नई ‘शुरुआत’ हुई अपनी।
पंख लगने लगे ‘उम्मीदों’ को,भूल गए हम कश्ती अपनी।।

बदलते वक़्त ने, रफ्तार से, फिर बदली किस्मत अपनी।
यादों का खजाना लेकर फिर हुई एक मुलाकात अपनी।।

चाँद की मध्यम सी रोशनी में वो खामोश सी बातें अपनी।
जनवरी की सर्द सी हवाऐं और ये ‘खुशनुमा’ यादें अपनी।।

अब और क्या बताऊं? तुम्हें मालूम तो है ‘कहानी’ अपनी।
ये सारी दुनिया बेगानी है बस ये ‘कहानी’ ही तो है अपनी।।
🍁🍁

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, January 6, 2024

ये सर्द मौसम, ✍️ हेमंत कुमार

ये सर्द मौसम ⛄⛄

ये सर्द मौसम, ये लंबी रातें,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में वजूद में 
आया था मैं.....

ये कोहरा, ये ओस की बूंदें,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में मेरे हिस्से 
में आए थे तुम.....

ये नर्म धूप, ये ठंडी हवाएं,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में महसूस हुआ
था प्रेम का पहला स्पर्श.....

ये नीला स्वेटर, ये सफेद शर्ट,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में पिलाई गई 
थी वो पहली कॉफी.....

ये देर तक जागना, ये पढ़ना,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में उड़ी थी नींद
नींद से जागने को.....

ये रंग बिरंगे फूल, ये भंवरे,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में छूआ था
मैंने तुम्हारे मन को.....

ये आधा दिसंबर, ये जनवरी,
मुझे यूं भी पसंद है क्योंकि
इसी सर्द मौसम में साल दर साल 
नव अंकुरित होता हूं मैं.....
🧑‍🎤🧑‍🎤

✍️ हेमंत कुमार

Sunday, December 31, 2023

जरा से ख्याल से, ✍️ हेमंत कुमार

जरा से ख्याल से ❤️🧿

उसके जरा से ‘ख्याल’ से बस ‘मदहोश’ हो उठता है वो।
उसकी हल्की सी ‘छूअन’ की याद से मचल उठता है वो।।

उलझनें, फिकरें, ‘मसले’ तमाम है उसकी जिंदगी में भी।
उसका नाम ‘लबों’ पर आते ही ‘खिलखिला’ उठता है वो।।

बेशक आज कल उसका ‘उससे’ मुसलसल राब्ता ना हो।
उसकी हंसी को अपने लबों पर लेकर ‘नाच’ उठता है वो।।

बेतरतीब सा, बिखरा सा, उलझा सा ‘किरदार’ है उसका।
महसूस करते ही उसको, चराग़ सा रोशन हो उठता है वो।।

उसके ‘दर्जे’ का उसे आज तक कभी कोई मिला ही नहीं।
जरा सी घुटन होते ही, उसे वक्त बेवक्त पुकार उठता है वो।।

घने कोहरे में ओस की बूंदों से बनाता है वो अक्स उसका।
जरा सी बूंदें गिरते ही चाय का कप हाथ में ले उठता है वो।।

ख़्वाब उसका इस कदर रात~दिन दौड़ता है ‘रगों’ में उसके।
बस होकर बावरा सा ‘बांसुरी’ की धुन पर झूम उठता है वो।।
☘️☘️

✍️ हेमंत कुमार 

Saturday, December 23, 2023

बेपनाह इश्क सा, ✍️ हेमंत कुमार

बेपनाह इश्क सा 🤞🤞

तमाम उलझनों
आपाधापी,भागदौड़
के बीच मुकम्मल होना
एक ‘खूबसूरत’ दिन का....

जैसे बीत गई हो
एक पूरी की पूरी सदी....

इतना गहरा असर है
तुमसे कुछ क्षण की एक 
छोटी सी ‘मुलाकात’ में....

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बेमतलब की बहस
झूठ, कपट, बेईमानी
की अधकचरा सी बातों
के बीच फोन की घंटी
का ‘यकायक’ बजना....

जैसे खत्म कर देता है
अवसाद, थकान, बेचैनी....

इतना गहरा असर है
तुमसे कुछ क्षण की एक 
छोटी सी ‘बातचीत’ में....

*********************

किसी ढलती शाम में जब
जब दिन बेकरार रहता है
रात से मिलने को और मन 
उदास होता है ‘बेवजह’ ही....

जैसे फूल खिल उठते है लबों 
पर और आंखें चमक उठती है....

इतना गहरा असर है
तुम्हारे भेजे गए किसी भी
मैसेज या फिर ‘रील’ में.... 
💌🎞️

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...