तमाम उलझनों
आपाधापी,भागदौड़
के बीच मुकम्मल होना
एक ‘खूबसूरत’ दिन का....
जैसे बीत गई हो
एक पूरी की पूरी सदी....
इतना गहरा असर है
तुमसे कुछ क्षण की एक
छोटी सी ‘मुलाकात’ में....
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बेमतलब की बहस
झूठ, कपट, बेईमानी
की अधकचरा सी बातों
के बीच फोन की घंटी
का ‘यकायक’ बजना....
जैसे खत्म कर देता है
अवसाद, थकान, बेचैनी....
इतना गहरा असर है
तुमसे कुछ क्षण की एक
छोटी सी ‘बातचीत’ में....
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किसी ढलती शाम में जब
जब दिन बेकरार रहता है
रात से मिलने को और मन
उदास होता है ‘बेवजह’ ही....
जैसे फूल खिल उठते है लबों
पर और आंखें चमक उठती है....
इतना गहरा असर है
तुम्हारे भेजे गए किसी भी
मैसेज या फिर ‘रील’ में....
💌🎞️
✍️ हेमंत कुमार
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