उसके जरा से ‘ख्याल’ से बस ‘मदहोश’ हो उठता है वो।
उसकी हल्की सी ‘छूअन’ की याद से मचल उठता है वो।।
उलझनें, फिकरें, ‘मसले’ तमाम है उसकी जिंदगी में भी।
उसका नाम ‘लबों’ पर आते ही ‘खिलखिला’ उठता है वो।।
बेशक आज कल उसका ‘उससे’ मुसलसल राब्ता ना हो।
उसकी हंसी को अपने लबों पर लेकर ‘नाच’ उठता है वो।।
बेतरतीब सा, बिखरा सा, उलझा सा ‘किरदार’ है उसका।
महसूस करते ही उसको, चराग़ सा रोशन हो उठता है वो।।
उसके ‘दर्जे’ का उसे आज तक कभी कोई मिला ही नहीं।
जरा सी घुटन होते ही, उसे वक्त बेवक्त पुकार उठता है वो।।
घने कोहरे में ओस की बूंदों से बनाता है वो अक्स उसका।
जरा सी बूंदें गिरते ही चाय का कप हाथ में ले उठता है वो।।
ख़्वाब उसका इस कदर रात~दिन दौड़ता है ‘रगों’ में उसके।
बस होकर बावरा सा ‘बांसुरी’ की धुन पर झूम उठता है वो।।
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✍️ हेमंत कुमार
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