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Sunday, December 31, 2023

जरा से ख्याल से, ✍️ हेमंत कुमार

जरा से ख्याल से ❤️🧿

उसके जरा से ‘ख्याल’ से बस ‘मदहोश’ हो उठता है वो।
उसकी हल्की सी ‘छूअन’ की याद से मचल उठता है वो।।

उलझनें, फिकरें, ‘मसले’ तमाम है उसकी जिंदगी में भी।
उसका नाम ‘लबों’ पर आते ही ‘खिलखिला’ उठता है वो।।

बेशक आज कल उसका ‘उससे’ मुसलसल राब्ता ना हो।
उसकी हंसी को अपने लबों पर लेकर ‘नाच’ उठता है वो।।

बेतरतीब सा, बिखरा सा, उलझा सा ‘किरदार’ है उसका।
महसूस करते ही उसको, चराग़ सा रोशन हो उठता है वो।।

उसके ‘दर्जे’ का उसे आज तक कभी कोई मिला ही नहीं।
जरा सी घुटन होते ही, उसे वक्त बेवक्त पुकार उठता है वो।।

घने कोहरे में ओस की बूंदों से बनाता है वो अक्स उसका।
जरा सी बूंदें गिरते ही चाय का कप हाथ में ले उठता है वो।।

ख़्वाब उसका इस कदर रात~दिन दौड़ता है ‘रगों’ में उसके।
बस होकर बावरा सा ‘बांसुरी’ की धुन पर झूम उठता है वो।।
☘️☘️

✍️ हेमंत कुमार 

Saturday, December 23, 2023

बेपनाह इश्क सा, ✍️ हेमंत कुमार

बेपनाह इश्क सा 🤞🤞

तमाम उलझनों
आपाधापी,भागदौड़
के बीच मुकम्मल होना
एक ‘खूबसूरत’ दिन का....

जैसे बीत गई हो
एक पूरी की पूरी सदी....

इतना गहरा असर है
तुमसे कुछ क्षण की एक 
छोटी सी ‘मुलाकात’ में....

********************

बेमतलब की बहस
झूठ, कपट, बेईमानी
की अधकचरा सी बातों
के बीच फोन की घंटी
का ‘यकायक’ बजना....

जैसे खत्म कर देता है
अवसाद, थकान, बेचैनी....

इतना गहरा असर है
तुमसे कुछ क्षण की एक 
छोटी सी ‘बातचीत’ में....

*********************

किसी ढलती शाम में जब
जब दिन बेकरार रहता है
रात से मिलने को और मन 
उदास होता है ‘बेवजह’ ही....

जैसे फूल खिल उठते है लबों 
पर और आंखें चमक उठती है....

इतना गहरा असर है
तुम्हारे भेजे गए किसी भी
मैसेज या फिर ‘रील’ में.... 
💌🎞️

✍️ हेमंत कुमार

Thursday, December 14, 2023

शायद, ✍️ हेमंत कुमार

शायद 💁💁

दिन छोटे और रातें बेहद लम्बी होती हैं।
जब वो मुझसे बातें करती है।
उसको ये लम्बी ‘रातें’ पसंद है शायद....

मचल के छत पे आती है और इठलाती है।
जब वो बादलों से बतियाती है।
उसको ये ‘बरसातें’ पसंद है शायद....

थोड़ी सी इश्क मिजाज, थोड़ी रूहानी सी है।
जब वो दिल पर दस्तक देती है।
उसको ये ‘जज्बात’ पसंद है शायद....

मेरा हाथ भरोसे से कस कर पकड़ लेती है।
जब वो भीड़~भाड़ में चलती है।
उसको ये “साथ” पसंद है शायद.....

रंग खिलते है चहरे पे, अदाएं निखरती है।
जब वो घने कोहरों में हँसती हैं।
उसको ये ‘सर्दियां’ पसंद है शायद....

सब नियम-कायदे उलट~पलट कर देती है।
जब बच्चों संग खिलखिलाती है।
उसको ये ‘पागलपन’ पसंद है शायद....

सलीके से मुस्कुराती है और चुप रहती है।
जब वो मेरी बातें सुनती है।
उसको ये मेरी ‘बातें’ पसंद है शायद....

अल्हड़पन, शोखियां, गुस्ताखियां, मनमर्जियां।
वो ये तमाम ‘कातिलाना’ हुनर जानती है।
उसको ये ‘सब’
और 
मुझको सिर्फ ‘वो’ पसंद है शायद....
🤟🤟

✍️ हेमंत कुमार

कोई दीवाना सा मैं, ✍️ हेमंत कुमार

कोई दीवाना सा मैं 🤷🤷

छांव सी तुम, उसमें सुकून पाता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
नदी सी तुम, उसमें मोती ढूंढता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।

धूप सी तुम, उसमें मुस्कुराता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
बादल सी तुम, उसमें झूमता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।

प्यास सी तुम, उसमें नमी टटोलता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
नींद सी तुम, उसमें ख़्वाब खोजता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।

कोहरे सी तुम, उसमें गुनगुनाता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
रात सी तुम, उसमें ‘टिमटिमाता’ हुआ कोई दीवाना सा मैं।।

नशे सी तुम, उसमें ‘मदहोश’ हुआ कोई दीवाना सा मैं।
शीशे सी तुम, उसमें निहारता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।

आज सी तुम, उसमें कल को ढूंढता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
किताब सी तुम, उसमें  प्रेम खोजता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।

गुलाब सी तुम, उसमें इत्र सा महकता हुआ कोई दीवाना सा मैं।
बारिश सी तुम, उसमें बूंदों सा बरसता हुआ कोई दीवाना सा मैं।।
💫✨

✍️ हेमंत कुमार 

Monday, November 20, 2023

मन्नतों से परे एक धागा प्रेम का, ✍️ हेमंत कुमार

मन्नतों से परे एक धागा प्रेम का 🎋❤️

मांग कर देख ली मन्नतें मैंने
और फिर निराश होकर खोल 
दिए सारे “धागे” मन्नतों वाले....

ना कभी वो मन्नतें पूरी हुई और
ना कभी ‘मन्नतों’ पर भरोसा हुआ....

मगर ‘तुम’ मुझे अनायास ही
मिले थे बिना कोई मन्नत मांगें.....

और फिर एक दिन अनायास ही 
उपज आया था ‘प्रेम’ हमारे बीच.....

रिश्तों की ‘प्रगाढ़ता’ कभी भी 
किसी नाम की मोहताज नहीं रही.....

फिर सहसा ही मैंने बांध दिया तुम्हें 
मन्नतों से परे, एक धागा ‘प्रेम’ का.....

कहां मालूम था कि एक कच्चा धागा
दे सकता है संबंधों को इतनी गहराईयाँ.....

कितना सुखद होता है ना 
यूं किसी का अपना-अपना सा हो जाना
और बिना माँगे “सब कुछ” सा मिल जाना.....
🧿🧿

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...