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Thursday, December 14, 2023

शायद, ✍️ हेमंत कुमार

शायद 💁💁

दिन छोटे और रातें बेहद लम्बी होती हैं।
जब वो मुझसे बातें करती है।
उसको ये लम्बी ‘रातें’ पसंद है शायद....

मचल के छत पे आती है और इठलाती है।
जब वो बादलों से बतियाती है।
उसको ये ‘बरसातें’ पसंद है शायद....

थोड़ी सी इश्क मिजाज, थोड़ी रूहानी सी है।
जब वो दिल पर दस्तक देती है।
उसको ये ‘जज्बात’ पसंद है शायद....

मेरा हाथ भरोसे से कस कर पकड़ लेती है।
जब वो भीड़~भाड़ में चलती है।
उसको ये “साथ” पसंद है शायद.....

रंग खिलते है चहरे पे, अदाएं निखरती है।
जब वो घने कोहरों में हँसती हैं।
उसको ये ‘सर्दियां’ पसंद है शायद....

सब नियम-कायदे उलट~पलट कर देती है।
जब बच्चों संग खिलखिलाती है।
उसको ये ‘पागलपन’ पसंद है शायद....

सलीके से मुस्कुराती है और चुप रहती है।
जब वो मेरी बातें सुनती है।
उसको ये मेरी ‘बातें’ पसंद है शायद....

अल्हड़पन, शोखियां, गुस्ताखियां, मनमर्जियां।
वो ये तमाम ‘कातिलाना’ हुनर जानती है।
उसको ये ‘सब’
और 
मुझको सिर्फ ‘वो’ पसंद है शायद....
🤟🤟

✍️ हेमंत कुमार

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