#गहरी_उदासी 👤👤
बारिशों के मौसम में जब जी घबराने लगे,
दर्पण में देखने से जब ‘चेहरा’ कतराने लगे,
गहरी उदासी जब तन~बदन में छाने लगे,
अकेलापन जब भीतर से ‘खटखटाने’ लगे,
अपनी परछाई भी जब साथ छुड़ाने लगे,
बात~बेबात जब सूखी आखों से पानी आने लगे,
हर ओर जब रकीब ही रकीब मंडराने लगे,
जब हर बेहद ‘खुशनुमा’ सा ख़्याल मुरझाने लगे,
भीड़ में भी जब ‘तन्हाइयां’ घेरने लगे,
इंसाफ़ का तराजू भी जब बेसबब झूलने लगे,
सांसों पर भी जब पहरेदारी होने लगे,
चारों ओर जब घना काला ‘अंधेरा’ छाने लगे,
तब तुम रखना याद ‘हमेशा’, तब तुम रखना याद ‘हमेशा’
खुद ही करना पड़ेगा सब पुरषार्थ तुम्हें,
खुद ही बनना पड़ेगा अपनी ढाल तुम्हें,
खुद ही चलना पड़ेगा होके निढाल तुम्हें,
खुद ही रचना पड़ेगा नया इतिहास तुम्हें,
आएं लाख मुश्किलें बेशक, कोई तो ‘हल’ होगा।
मैदान में डटे रहो तुम,आज नहीं तो ‘कल’ होगा।।
हर रात के बाद, निश्चित ही एक नया सूर्य ‘उदय’ होगा।
उचित समय आने पर ही हर बीज नव ‘अंकुरित’ होगा।।
छटेगी गहरी उदासी, चेहरे पर कमल मुस्कुराएंगे।
बैठना तुम पास मेरे, हम मिल के खिलखिलाएंगे।।
🌸🌸
✍️ हेमंत कुमार