बीते कुछ अरसे से मेरी कलम
साध नहीं पा रही है “शब्दों” को
शायद “शब्द” सीधे पहुंच रहे हैं
तुम तक.....
सुबह की नई किरणों के साथ
या.....
चांद की मद्धम सी “रोशनी” में
या फिर.....
गहरी नींद में किसी खूबसूरत
से “ख़्वाब” की परतों के बीच।
तुम उकेर देना उन शब्दों को
अपने “कैनवास” पर और छू
लेना उन उकेरे हुए शब्दों को
अपने “अधरों” से और जीवंत
कर देना मेरी “कविताओं” को
....कि फिर कभी जब भी सूखा
पड़े तो नमी “महसूस” कर सकें
मेरे शब्द तुम्हारे “अधरों” की और
उम्मीदों के गीले रंग उधार ले सकें
तुम्हारे “कैनवास” से....
🎨🖌️
✍️ हेमंत कुमार