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Thursday, May 11, 2023

महफिल, ✍️ हेमंत कुमार

महफिल 🍸🍸

कौन जाने उसका महफिल में आना किस-किस को अखरने लगा।
उसने लहराई अपनी जुल्फें और हमारे जाम का रंग बदलने लगा।।

अब किसी से क्या पूछते महफिल में छाई इस मदहोशी का सबब।
अभी हमने सलीके से पीयी भी नहीं और हमें नशा चढ़ने लगा।।

कब से आखिरी सफ़ में बदहवास बैठे थे हम लेकर मय का प्याला।
किसी ने पुकारा उसका नाम और हमारी रगों में इश्क बहने लगा।।

खामोशी सी छा गई मस्ती भरी महफिल में, वो आया यूं हंसते हंसाते।
बर्फ सी जमने लगी हर तरफ़ और हमारी सांसों से धुआं निकलने लगा।।

खूबसूरती के ‘सादेपन’ का भी किसी से कोई मुकाबला ही नहीं।
उसने लगाई माथे पर बिंदिया और आसमां में चाँद चमकने लगा।।

ये कैसा अटूट रिश्ता है इन अनकहे, अनजाने, अनसुने जज्बातों का।
पेड़ों के पत्ते जरा से मुरझाए नहीं और बादलों से अमृत बरसने लगा।।
💌💌

✍️ हेमंत कुमार

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