इतना चाहने वाला उसे ‘दुनिया’ में कहीं मिलेगा नहीं।
गुजर गया जो वक़्त, वो ‘वक़्त’ फिर कहीं मिलेगा नहीं।।
बस एक अदद मुस्कुरा कर ही ‘दिल’ जीत लेता है वो।
ये कातिलाना “हुनर” उसके अलावा कहीं मिलेगा नहीं।।
बरसों पहले जमीं पर खुदा की तलाश छोड़ चुका है वो।
मालूम है ‘उसको’ बिना उसके “खुदा” कहीं मिलेगा नहीं।।
इस ‘हसीन’ मौसम में उसने पहन लिया है ‘धानी’ रंग।
अब इस “रंग” का थान “बाज़ार” में कहीं ‘मिलेगा’ नहीं।।
शायद एक प्यास अधूरी रह जायेगी समंदर की आस में।
सूख जाएगा समंदर मगर किसी “दरिया” में मिलेगा नहीं।।
आलम ये है हमारी “मसरूफियत” का कि देर से पहुंचे।
‘सजदे’ में है ‘वो’ अब, किसी से “वो” अब ‘मिलेगा’ नहीं।।
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✍️ हेमंत कुमार
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