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Sunday, July 30, 2023

कैनवास, ✍️ हेमंत कुमार

कैनवास 🎢

बीते कुछ अरसे से मेरी कलम 
साध नहीं पा रही है “शब्दों” को
शायद “शब्द” सीधे पहुंच रहे हैं
तुम तक.....

सुबह की नई किरणों के साथ
या.....
चांद की मद्धम सी “रोशनी” में 
या फिर.....
गहरी नींद में किसी खूबसूरत 
से “ख़्वाब” की परतों के बीच।

तुम उकेर देना उन शब्दों को
अपने “कैनवास” पर और छू
लेना उन उकेरे हुए शब्दों को
अपने “अधरों” से और जीवंत 
कर देना मेरी “कविताओं” को

....कि फिर कभी जब भी सूखा
पड़े तो नमी “महसूस” कर सकें
मेरे शब्द तुम्हारे “अधरों” की और
उम्मीदों के गीले रंग उधार ले सकें 
तुम्हारे “कैनवास” से....
🎨🖌️

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, July 18, 2023

अहसास, ✍️ हेमंत कुमार

अहसास 🏞️🌲

ये पथरीले संकरे रास्तों पर चलने का अहसास अच्छा है।
वो ‘जुगनू’ जो साथ चल रहा है बन के रोशनी, अच्छा है।।

एक ‘दरिया’ मुकम्मल होने के लिए बिछड़ता है पहाड़ों से।
वो बादल बन कर चूम रहा है ‘माथा’ पर्वतों का, अच्छा है।।

जिस वक़्त तपते हुए रेगिस्तान में नहीं मिलता कोई साया।
वो दीया अंधेरों में बे-वक़्त कर रहा है ‘उजाला’, अच्छा है।।

जंगलों में इस वक़्त पसरा हुआ है आलम घनी बेचैनी का।
वो पुरसुकून है अपने ‘मन’ की गहरी वादियों में, अच्छा है।।

बिना वक़्त की बारिशें अक्सर कर देती हैं तबियत नासाज़।
वो ‘एहतियातन’ छाता लेकर बाहर निकलता है, अच्छा है।।

लकड़हारे कर रहे हैं दावा हरे जंगलों के ”मसीहा” होने का।
वो सूखे पेड़ों में जिस मासूमियत से पानी दे रहा है,अच्छा है।।

बेहद मुश्किल है जंगलों के ‘रस्मों-रिवाज़’ को समझ पाना।
वो जंगली ‘फूल’ मानो मुझे देख के खिल रहा है, अच्छा है।।
🌱🥀

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, July 8, 2023

कश्मकश, ✍️ हेमंत कुमार

कश्मकश 🐣🐣

तुम्हारे लफ्जों की शिद्दत को महसूस करूं या तुम्हारी झील सी आंखों को निहारता रहूं.....
कश्मकश में रहता हूं जब भी तुम्हें देखता हूं.....

तुम्हारी किसी अदा पर जान लुटाऊं या तुम्हारी किसी बात पर मंद~मंद मुस्कुराता रहूं..... 
कश्मकश में रहता हूं जब भी तुम्हें सोंचता हूं.....

तुम्हारे हाथ को मजबूती से थाम कर चलूं या तुम्हारे किसी एक इशारे के इंतजार में रहूं.....
कश्मकश में रहता हूं जब भी तुम्हें मिलता हूं.....

तुम्हारे गले लग कर बस खामोश हो जाऊं या तुम्हारे कंधे पर सर रखकर गुनगुनाता रहूं.....
कश्मकश में रहता हूं जब भी तुम्हें चाहता हूं.....

तुम्हारी निश्छल हंसी लिखूं या तुम्हारे चेहरे से उदास, गहरी खामोशी की परतें हटाता रहूं.....
कश्मकश में रहता हूं जब भी तुम्हें लिखता हूं.....
❤️

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, June 3, 2023

दिल की बातें, ✍️ हेमंत कुमार

दिल की बातें ❣️❣️

इतना चाहने वाला उसे ‘दुनिया’ में कहीं मिलेगा नहीं।
गुजर गया जो वक़्त, वो ‘वक़्त’ फिर कहीं मिलेगा नहीं।।

बस एक अदद मुस्कुरा कर ही ‘दिल’ जीत लेता है वो।
ये कातिलाना “हुनर” उसके अलावा कहीं मिलेगा नहीं।।

बरसों पहले जमीं पर खुदा की तलाश छोड़ चुका है वो।
मालूम है ‘उसको’ बिना उसके “खुदा” कहीं मिलेगा नहीं।।

इस ‘हसीन’ मौसम में उसने पहन लिया है ‘धानी’ रंग।
अब इस “रंग” का थान “बाज़ार” में कहीं ‘मिलेगा’ नहीं।।

शायद एक प्यास अधूरी रह जायेगी समंदर की आस में।
सूख जाएगा समंदर मगर किसी “दरिया” में मिलेगा नहीं।।

आलम ये है हमारी “मसरूफियत” का कि देर से पहुंचे।
‘सजदे’ में है ‘वो’ अब, किसी से “वो” अब ‘मिलेगा’ नहीं।।
😌😌

✍️ हेमंत कुमार

Thursday, May 11, 2023

महफिल, ✍️ हेमंत कुमार

महफिल 🍸🍸

कौन जाने उसका महफिल में आना किस-किस को अखरने लगा।
उसने लहराई अपनी जुल्फें और हमारे जाम का रंग बदलने लगा।।

अब किसी से क्या पूछते महफिल में छाई इस मदहोशी का सबब।
अभी हमने सलीके से पीयी भी नहीं और हमें नशा चढ़ने लगा।।

कब से आखिरी सफ़ में बदहवास बैठे थे हम लेकर मय का प्याला।
किसी ने पुकारा उसका नाम और हमारी रगों में इश्क बहने लगा।।

खामोशी सी छा गई मस्ती भरी महफिल में, वो आया यूं हंसते हंसाते।
बर्फ सी जमने लगी हर तरफ़ और हमारी सांसों से धुआं निकलने लगा।।

खूबसूरती के ‘सादेपन’ का भी किसी से कोई मुकाबला ही नहीं।
उसने लगाई माथे पर बिंदिया और आसमां में चाँद चमकने लगा।।

ये कैसा अटूट रिश्ता है इन अनकहे, अनजाने, अनसुने जज्बातों का।
पेड़ों के पत्ते जरा से मुरझाए नहीं और बादलों से अमृत बरसने लगा।।
💌💌

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...