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Wednesday, May 15, 2024

मैं और तुम, ✍️ हेमंत कुमार

मैं और तुम 👩‍❤️‍👨 🌛🌜

मैं यहां रोज चांद से बातें करता हूं.....
तुम भी वहां कभी चांद को तकती हो क्या??

मैं यहां रात-रात भर जागा करता हूं.....
तुम भी वहां कभी-कभी रातों में जगती हो क्या??

मैं यहां ख्वाबों में तुमसे मिला करता हूं.....
तुम भी वहां दर्पण को देख के सजती हो क्या??

मैं यहां ना जाने क्या-क्या सहा करता हूं.....
तुम भी वहां सुन्दर सपनों को तजती हो क्या??

मैं यहां रोज तेरा रास्ता तका करता हूं.....
तुम भी वहां कभी ख़्वाब सजा सकती हो क्या??

मैं यहां सिर्फ तुझ में ही डूबा रहता हूं.....
तुम भी वहां कभी आखों में पानी रखती हो क्या??

मैं यहां आजकल खुद में खुश रहता हूं.....
तुम भी वहां खिलखिला के बच्चों सी हंसती हो क्या??

मैं यहां नई-नई कविताऐं गढ़ता रहता हूं.....
तुम भी कहीं किसी दुनिया में सच में बसती हो क्या??
💌💌 

✍️ हेमंत कुमार

Sunday, April 14, 2024

मुकम्मल ख़्वाब, ✍️ हेमंत कुमार

मुकम्मल ख़्वाब 🌃🌃

सुनसान, अंधेरी रातों में एक “मुकम्मल” ख़्वाब देखा है हमने।
एक ‘जुगनू’ को अंधेरों में अपने सीने में चमकते देखा है हमने।

कहां जाहिर हो पाती हैं मन के गहरे तल में छिपी बातें अनजानों से।
इस बेबसी के आलम में भी अपने “दिल” को धड़कते देखा है हमने।।

टप-टप करती बारिश की बूंदें “सृजन” करती हैं मधुर संगीत का।
ऐसे मौसम में खुद को पुराने ख्यालों में सिमटते देखा है हमने।।

हर इक जज़्बात को सही समय पर कागज पर उतारना कहां मुमकिन है।
यादों के बेहद गहरे “ज्वार” के बीच शब्दों को बिखरते देखा है हमने।।

जब हर तरफ जगमग रोशनी में नहाए, हंसते मुस्कुराते नजारे हो।
ऐसे मंजर में “बेसबब” ही खुद को खुद से उलझते देखा है हमने।।

किसको नहीं चाहत होगी बेइंतिहा दौलत, शोहरत, ओहदों की इस जमाने में।
लेकिन, सिर्फ एक “जुगनू” के जगमगाने से खुद को निखरते देखा है हमने।।
😊😊

✍️ हेमंत कुमार

Monday, March 25, 2024

अरमान, ✍️ हेमंत कुमार

अरमान 💁💁

कितने ‘अरमानों’ पर पानी फिरा है, कितने सपने टूटे हैं। 
चाहने से ‘इश्क’ वालों के जात-पात के बंधन कब टूटे हैं।।

बुने हैं सपने जब भी किसी मह जबीन ने, सच में झूठे हैं।
टूट जाते हैं लोग खूब ऐंठ में, मगर मोहब्बत में कब टूटे हैं।।

जो ना बदले ‘वक़्त’ के साथ,लोग वो हमेशा पीछे छूटे हैं।
रास्ते जो चुन लिए अल्हड़ जवानी ने, वो रास्ते कब टूटे हैं।।

इधर वो फैसले पर अटल है, उधर इश्क के देवता रूठे हैं।
जीवन की ‘चौसर’ है ये, भ्रम यहां ‘कौरवों’ के कब टूटे हैं।।

सीने में ‘दरिया’ समेटे बैठा था वो, जिसके ‘आंसू’ फूटे हैं। 
कोई कितनी भी ‘हिम्मत’ जोड़े, कंकड़ से पर्वत कब टूटे हैं।।

हालत ठीक नही है ‘माना’ पर ‘रब’ के मिलाए कब छूटे हैं।
लाख चाह ले कोई, ‘रब’ चाहे तो, अंबर के तारे कब टूटे हैं।।
🚸🚸

✍️ हेमंत कुमार

Friday, March 8, 2024

स्त्री, ✍️ हेमंत कुमार

स्त्री 🦋🌹

माना पग-पग पर हैं बंधन
हर जिम्मेदारी न्यारी.......
पर तुमने हर बंधन को...... 
........कदम ताल बनाया है। 

माना सृजन से समर्पण तक
हर जिम्मेदारी प्यारी.......
पर तुमने सूझ बूझ से......
.......अपना मुकाम बनाया है।

माना भक्ति से परम शक्ति तक
हर जिम्मेदारी भारी.......
पर तुमने अपने बलबूते......
.......एक अलग जहां बनाया है।

स्त्री.....
तुम आजाद थी, हो और रहोगी....
बहते पानी को कब कोई रोक पाया है?
और जब-जब भी हिमाकत हुई है....जलजला आया है। 😊💐

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, March 5, 2024

तुम, ✍️ हेमंत कुमार

तुम 💐💐

गुलाबी सा मौसम, गुलाबी से ख़्वाब, गुलाबी गुलाबी सी तुम....

खिले खिले से फूल, खिली खिली सी धूप, खिली खिली सी तुम....

लहराती हुई फसलें, लहराती हुई जुल्फें, लहराती हुई सी तुम....

महकते हुए नजारे, महकते हुए अहसास, महकती हुई सी तुम....

हंसते हुए ‘रास्ते’, हंसते हुए ‘दरखत’, ‘हंसती’ हुई सी तुम....

नाचते हुए मोर हर और, नाचते हुए गुलमोहर, नाचती हुई सी तुम....

गुनगुनाते हुए भंवरे, गुनगुनाती हुई तितलियां, गुनगुनाती हुई सी तुम....
🥀🦋

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...