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Monday, November 20, 2023

मन्नत, ✍️ हेमंत कुमार

#मन्नत 🎋🎋
एक
धागा
मन्नत
का
जो
मैने 
बांधा
था
उस
पीपल 
के
पेड़
पर....

जब
मैने 
पहली 
बार 
तुम्हें 
मांगा
था
बड़ी
शिद्दत
से....

अब
लगता
है
वो
धागा 
खोलने
का
वक़्त
गया
है....

ताकि
भ्रम
बना 
रह
सके
मांगी
गई
मन्नतों
का
और
बेजुबान
दिलों
का....
☘️❤️

✍️ हेमंत कुमार

Friday, October 13, 2023

कृष्ण भी आएंगे!!!, ✍️ हेमंत कुमार

कृष्ण भी आएंगे!!! 🦚🦚

तुझमें होगा सुदामा सा सुधि मित्र तो कृष्ण भी आएंगे।
तुझमें होगा अर्जुन सा ‘पराक्रमी’ तो कृष्ण भी आएंगे।
तुझमें होगा द्रोपदी सा दृढ़ निश्चय तो कृष्ण भी आएंगे।
तुझमें होगा राधा सा निश्छल प्रेम तो कृष्ण भी आएंगे।
तुझमें होगा मीरा सा अगाध स्नेह तो कृष्ण भी आएंगे।
तुझमें होगा रुक्मिणी सा समर्पण तो कृष्ण भी आएंगे।
🌠🌠
जय श्री कृष्ण.....😊☘️

✍️ हेमंत कुमार

Sunday, October 8, 2023

जुगनू, ✍️ हेमंत कुमार

‘जुगनू’ 🐞

बेशक 
 मुझे 
‘चांद’
पसंद 
   है....
  पर 
  मुझे
  एक
‘जुगनू’ 
   से 
 बेहद 
 गहरा
 जुड़ाव 
    है....

 ‘चांद’
  ऊपर 
 बैठकर
  जाने
 कितने
  रूप
बदलता 
    है....
  मगर
  यहां
   ये
‘जुगनू’
  दिल
   में
उतरकर
  बस
सबकुछ
 रोशन
  कर
  देता
   है।
  ☘️

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, September 16, 2023

धागा मन्नत का, ✍️ हेमंत कुमार

#धागा_मन्नत_का 🎋🎋

मैं बांध के आया था
एक धागा मन्नत का....

पीपल के पेड़ पर....

जहाँ मुझ से पहले 
मांगी जा चुकी थी 
हजारों मन्नतें....

लेकिन मेरा हमेशा
अटूट विश्वास रहा है....
खुद पर, तुम पर 
और खुदा पर....

उस दिन के बाद से
मैंने पीछे मुड़ के
नहीं देखा....

मुझे वो सब मिला 
जो मैंने चाहा था
सिवाय ‘तुम्हारे’....

उस मन्नत में मैंने
बस तुम्हें मांगा था....
लेकिन मुझे मिला बस
इंतजार, एक ‘अंतहीन’
इंतजार....

फिर तो जैसे मन्नतों 
से भरोसा ही उठ गया....

अब मैं बस खुद से 
खुद ही मांग लेता हूं....
थोड़ी सी फुर्सत, 
थोड़ा सा सुकून, थोड़ी 
तन्हाई, थोड़ा इंतजार....

और उकेर देता हूं अपने
मन के उद्गारों को कागज़ पर....

ये मन्नतों के धागे मुझे
कभी नहीं पहुंचा पाएंगे
तुम तक....

लेकिन मेरी कविताएं
जरूर पहुंचेंगी तुम्हारी
रूह तक और हो जाएंगी 
अमर सदा-सदा के लिए....
📋📋

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, August 19, 2023

गहरी उदासी, ✍️ हेमंत कुमार

#गहरी_उदासी 👤👤

बारिशों के मौसम में जब जी घबराने लगे,
दर्पण में देखने से जब ‘चेहरा’ कतराने लगे,
गहरी उदासी जब तन~बदन में छाने लगे,
अकेलापन जब भीतर से ‘खटखटाने’ लगे,

अपनी परछाई भी जब साथ छुड़ाने लगे,
बात~बेबात जब सूखी आखों से पानी आने लगे,
हर ओर जब रकीब ही रकीब मंडराने लगे,
जब हर बेहद ‘खुशनुमा’ सा ख़्याल मुरझाने लगे,

भीड़ में भी जब ‘तन्हाइयां’ घेरने लगे,
इंसाफ़ का तराजू भी जब बेसबब झूलने लगे,
सांसों पर भी जब पहरेदारी होने लगे,
चारों ओर जब घना काला ‘अंधेरा’ छाने लगे,

तब तुम रखना याद ‘हमेशा’, तब तुम रखना याद ‘हमेशा’

खुद ही करना पड़ेगा सब पुरषार्थ तुम्हें,
खुद ही बनना पड़ेगा अपनी ढाल तुम्हें,
खुद ही चलना पड़ेगा होके निढाल तुम्हें,
खुद ही रचना पड़ेगा नया इतिहास तुम्हें,

आएं लाख मुश्किलें बेशक, कोई तो ‘हल’ होगा।
मैदान में डटे रहो तुम,आज नहीं तो ‘कल’ होगा।।

हर रात के बाद, निश्चित ही एक नया सूर्य ‘उदय’ होगा।
उचित समय आने पर ही हर बीज नव ‘अंकुरित’ होगा।।

छटेगी गहरी उदासी, चेहरे पर कमल मुस्कुराएंगे।
बैठना तुम पास मेरे, हम मिल के खिलखिलाएंगे।।
🌸🌸

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...