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Wednesday, December 4, 2024

कहानी अनकही, ✍️ हेमंत कुमार

कहानी अनकही- 2 🌺🌻

उसकी कहानी में इक “गज़ब” का किरदार हूं मैं।
उसकी कहानी में इक ‘असल’ का दिलदार हूं मैं।।

आए बहुत से “आनी-फ़ानी” उसकी जिन्दगी में।
उसकी हर सुनी अनसुनी कहानी में नमूदार हूं मैं।।

कच्चा पक्का सा इश्क रहा है कच्ची पक्की उम्रों में।
उसकी सारी आधी-अधूरी चाहतों का हकदार हूं मैं।।

अजीब सी कशिश और नादानी है मेरी चाहतों में।
उसकी हर मौसम की बेवफ़ाईयों में वफादार हूं मैं।।

लबों पर आके कुछ ठहर सा जाता है मेरी सांसों में।
उसकी तमाम अनकही कहानियों का राजदार हूं मैं।।

वक्त की रवानी में, जवानी में, इस ढलती जिंदगानी में।
उसकी हर कहानी में इक किस्सा बेहद ‘यादगार’ हूं मैं।।
❤️

✍️ हेमंत कुमार 

फ़ानी- नष्ट होने वाला.....
नमूदार- नितांत साफ़, जो स्पष्ट दिखाई देता हो.....

Sunday, September 29, 2024

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆

बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा।
तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।।

हर तरफ ‘बेहिसाब’ मसले हैं इस हंसती~खेलती दुनिया में।
अपने खुद के गढ़े हुए किरदार से जुदा हो के कहां जाऊंगा।।

आधा सा चांद टूट के बिखरा हुआ है धान के खाली खेतों में।
अब ये बता इस ‘गज़ब’ के मयकदे का हो के कहां जाऊंगा।।

गम है, खुशी है, कमी है, हंसी है, मुफलिसी है, तिजारत है।
चलो ठीक है, सब है, मगर इन सब का हो के कहां जाऊंगा।।

इक तेज दरिया बह रहा है पहाड़ के आड़े~तिरछे आंगन से।
मैं खारा पानी हूं, मैं तेरी काली आंखों से हो के कहां जाऊंगा।।

इक उम्र लगती है तमन्नाओं के बड़े~बड़े महल खड़े करने में।
मैं तेरे दिल की तिलस्मी दुनिया से जुदा हो के कहां जाऊंगा।।
💟💟

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, September 3, 2024

साजिश, ✍️ हेमंत कुमार

साजिश 💁💁

बादलों के पार हो रही थी ‘साजिश’ उसके खिलाफ।
हवाओं की अब हो रही थी ‘गवाही’ उसके खिलाफ।।

कल ही की बात थी ‘कलंदर’ था वो अपने जहां का।
आज हो रही थी खुलकर ‘बगावत’  उसके खिलाफ।।

यकीनन किसी और की ‘रोशनी’ से ‘रोशन’ था चांद।
दिन उगते ही हो गई सारी ‘रोशनाई’ उसके खिलाफ।।

जाने क्यों बेफिक्र था ‘जंगल’ अपनी ‘हदों’ को लेकर।
लकड़ी ‘कुल्हाड़ी’ से मिलते ही हो गई उसके खिलाफ।।

पैमाना क्या है इंसाफ के झूलते तराजू का क्या मालूम।
सिक्कों की खनक भी हो गई अब तो उसके खिलाफ।।

खुदा की बंदगी बे-ग़ैरत को भी दे सकती है एक मौका।
मगर किसी ‘मासूम’ की बद्दुआ ना हो उसके खिलाफ।।
🎭🎭

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, August 17, 2024

खिड़की!!!, ✍️ हेमंत कुमार

खिड़की!!! 🪟

उदास ‘मन’ से सुनसान गली में
टहलते वक्त ‘नज़र’ गली के कोने 
वाले ”घर” की एक खुली हुई 
खिड़की पर अनायास ही चली गई.....

एक विचार मन में आया कि 
क्यों खुली हुई होगी ये ‘खिड़की’.....

‘शायद’........

शायद कोई चोर घुसा हो 
चुपके से इस घर में.....??

शायद कोई रहता ही ना हो
इस घर में बरसों से.....??

शायद तेज़ हवा के झोंके से
खिड़की खुद ही खुल गई हो.....??

या फिर.....

शायद किसी के आने की उम्मीद
में खुली हुई हो ये खिड़की.....

आजकल के इस बंद खिड़की, 
दरवाजों और पर्दों के कठिन दौर में 
खुली हुई ‘खिड़कियां’ हमेशा इक
उम्मीद जगाती रहती हैं ‘बेजार दिलों में’.....
🤍

✍️ हेमंत कुमार

Sunday, July 7, 2024

दिल का करार, ✍️ हेमंत कुमार

दिल का करार 🌸🌧️

बारिशों का ये ‘मौसम’ फिर से ले आया है 
नमी ‘बंजर’ से पड़े हुए सारे के सारे दिलों में.....

फिर एक बार फूटने लगी हैं हरी-हरी कोपलें 
बेहद खामोश से खड़े इन झुलसे हुए दरखतों में.....

बारिशों के इस हसीन ‘मौसम’ में ‘मैं’ भी 
फिर इक बार, ढूंढने लगा हूं “दिल का करार”......

यादों के झरोखों को ‘आईनों’ में ढूंढने लगा हूं, 
अब मैं बारिश की बूंदों में सुकून ढूंढने में लगा हूं.....

रूठ कर जाने वालों को अब भुलाने लगा हूं, 
अब मैं खुद को ही फिर से ‘जीवंत’ करने में लगा हूं.....

सुबह-शाम नन्हें पौधों से अब बतियाने लगा हूं, 
अब मैं पुरानी ‘किताबों’ से हाथ मिलाने में लगा हूं.....

खेतों में चांद को देखकर अब मुस्कुराने लगा हूं, 
अब मैं बारिशों में जंगलों के नक्शे बनाने में लगा हूं.....

खारे पानी की हर इक बूंद को बहाने में लगा हूं, 
अब मैं बादलों की प्यास को दिल में समाने में लगा हूं......

अपने गुनाहों की अब फेहरिस्त बनाने लगा हूं, 
अब मैं बारिशों में ‘गुलमोहर’ के पेड़ उगाने में लगा हूं......

हर इक नए दिन का अब लुफ्त उठाने लगा हूं, 
अब मैं दोस्तों को ‘इश्क’ के किस्से सुनाने में लगा हूं......
❤️🥀

✍️ हेमंत कुमार

बेचैन दिल की तमन्ना, ✍️ हेमन्त कुमार

बेचैन दिल की तमन्ना 🙇‍♂️🙇‍♂️ बेचैन दिल की तमन्ना है कि इस दिल को करार आ जाए। अब वो वक्त बीत चुका है, बस ये दिल इतना समझ जाए।। ...