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Tuesday, September 3, 2024

साजिश, ✍️ हेमंत कुमार

साजिश 💁💁

बादलों के पार हो रही थी ‘साजिश’ उसके खिलाफ।
हवाओं की अब हो रही थी ‘गवाही’ उसके खिलाफ।।

कल ही की बात थी ‘कलंदर’ था वो अपने जहां का।
आज हो रही थी खुलकर ‘बगावत’  उसके खिलाफ।।

यकीनन किसी और की ‘रोशनी’ से ‘रोशन’ था चांद।
दिन उगते ही हो गई सारी ‘रोशनाई’ उसके खिलाफ।।

जाने क्यों बेफिक्र था ‘जंगल’ अपनी ‘हदों’ को लेकर।
लकड़ी ‘कुल्हाड़ी’ से मिलते ही हो गई उसके खिलाफ।।

पैमाना क्या है इंसाफ के झूलते तराजू का क्या मालूम।
सिक्कों की खनक भी हो गई अब तो उसके खिलाफ।।

खुदा की बंदगी बे-ग़ैरत को भी दे सकती है एक मौका।
मगर किसी ‘मासूम’ की बद्दुआ ना हो उसके खिलाफ।।
🎭🎭

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, August 17, 2024

खिड़की!!!, ✍️ हेमंत कुमार

खिड़की!!! 🪟

उदास ‘मन’ से सुनसान गली में
टहलते वक्त ‘नज़र’ गली के कोने 
वाले ”घर” की एक खुली हुई 
खिड़की पर अनायास ही चली गई.....

एक विचार मन में आया कि 
क्यों खुली हुई होगी ये ‘खिड़की’.....

‘शायद’........

शायद कोई चोर घुसा हो 
चुपके से इस घर में.....??

शायद कोई रहता ही ना हो
इस घर में बरसों से.....??

शायद तेज़ हवा के झोंके से
खिड़की खुद ही खुल गई हो.....??

या फिर.....

शायद किसी के आने की उम्मीद
में खुली हुई हो ये खिड़की.....

आजकल के इस बंद खिड़की, 
दरवाजों और पर्दों के कठिन दौर में 
खुली हुई ‘खिड़कियां’ हमेशा इक
उम्मीद जगाती रहती हैं ‘बेजार दिलों में’.....
🤍

✍️ हेमंत कुमार

Sunday, July 7, 2024

दिल का करार, ✍️ हेमंत कुमार

दिल का करार 🌸🌧️

बारिशों का ये ‘मौसम’ फिर से ले आया है 
नमी ‘बंजर’ से पड़े हुए सारे के सारे दिलों में.....

फिर एक बार फूटने लगी हैं हरी-हरी कोपलें 
बेहद खामोश से खड़े इन झुलसे हुए दरखतों में.....

बारिशों के इस हसीन ‘मौसम’ में ‘मैं’ भी 
फिर इक बार, ढूंढने लगा हूं “दिल का करार”......

यादों के झरोखों को ‘आईनों’ में ढूंढने लगा हूं, 
अब मैं बारिश की बूंदों में सुकून ढूंढने में लगा हूं.....

रूठ कर जाने वालों को अब भुलाने लगा हूं, 
अब मैं खुद को ही फिर से ‘जीवंत’ करने में लगा हूं.....

सुबह-शाम नन्हें पौधों से अब बतियाने लगा हूं, 
अब मैं पुरानी ‘किताबों’ से हाथ मिलाने में लगा हूं.....

खेतों में चांद को देखकर अब मुस्कुराने लगा हूं, 
अब मैं बारिशों में जंगलों के नक्शे बनाने में लगा हूं.....

खारे पानी की हर इक बूंद को बहाने में लगा हूं, 
अब मैं बादलों की प्यास को दिल में समाने में लगा हूं......

अपने गुनाहों की अब फेहरिस्त बनाने लगा हूं, 
अब मैं बारिशों में ‘गुलमोहर’ के पेड़ उगाने में लगा हूं......

हर इक नए दिन का अब लुफ्त उठाने लगा हूं, 
अब मैं दोस्तों को ‘इश्क’ के किस्से सुनाने में लगा हूं......
❤️🥀

✍️ हेमंत कुमार

Wednesday, June 12, 2024

मैं तुम्हें याद आऊंगा, ✍️ हेमंत कुमार

मैं तुम्हें याद आऊंगा! 🙇‍♂️🙇‍♂️

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

सुबह की पहली हिचकी के साथ,
गर्मागर्म अदरक वाली चाय के साथ,
घर में बनती हुई किसी डिश के साथ,

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

मोबाइल की बजती घंटी के साथ,
हर बीतते दिन की खुमारी के साथ,
उठते-बैठते, हर बात-बेबात के साथ.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

जिम में, एरोबिक्स क्लास में, रेस्टोरेंट में,
बालकनी में, बिस्तर में, नींद में, 
हकीकत में, ख़्वाब में, जज़्बात में.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

तन्हाई में, रुसवाई में, 
शराफत में, नज़ाकत में
अपनों में, बेगानों में, 

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

इल्म की सच्ची दास्तानों में
किताबों में, रस्मों रिवाजों में, 
जंजालों में, नर्म उजालों में.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

भरी बरसातों में, टप टप करती बूंदों में,
दिसंबर की सर्दी में, घने, बहुत घने कोहरे में,
चिलचिलाती हुई गर्मी में, बर्फ से ठंडे कोल्डड्रिंक में.....

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

हर ढलती शाम में, हर शायर बदनाम में,
घटते बढ़ते बाजार में, नफे में, नुकसान में,
हर सच में, हर झूठ में, सियासत के घालमेल में...... 

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

सफेद/गुलाबी जूते पहनते वक्त
नीली जींस और उस पर साड़ी पहनते वक्त
बच्चों संग पार्क में बैडमिंटन खेलते वक्त

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

कलाई पर वही पुरानी घड़ी पहनते वक्त
होठों पर ध्यान से लिपस्टिक लगाते वक्त
रेबैन के चश्मे लगा कर मॉल में घूमते वक्त......

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

अकेले में सिसकियां लेते वक्त,
गाड़ी में बजती हुई गज़लें सुनते वक्त,
उलझे हुए बालों को सुलझाते वक्त,

मैं तुम्हें याद आऊंगा....

किसी का हाथ पकड़कर चलते वक्त,
अरसे बाद खुद के वजूद को ढूंढते वक्त,
खुद की खुशबू को महसूस करते वक्त,

मैं तुम्हें याद आऊंगा....
मैं तुम्हें बार बार याद आऊंगा....

मैं एक बेतरतीब सा “ख़्वाब” हूं और ऐसे ख़्वाब
कब धर पाए हैं रूप ‘हकीकत’ का.....
वो तो बस ‘बह’ जाया करते हैं नम आंखों से
झरने बनकर, नींद बनकर, इंतजार बनकर.....
❤️

✍️ हेमंत कुमार

Wednesday, May 15, 2024

मैं और तुम, ✍️ हेमंत कुमार

मैं और तुम 👩‍❤️‍👨 🌛🌜

मैं यहां रोज चांद से बातें करता हूं.....
तुम भी वहां कभी चांद को तकती हो क्या??

मैं यहां रात-रात भर जागा करता हूं.....
तुम भी वहां कभी-कभी रातों में जगती हो क्या??

मैं यहां ख्वाबों में तुमसे मिला करता हूं.....
तुम भी वहां दर्पण को देख के सजती हो क्या??

मैं यहां ना जाने क्या-क्या सहा करता हूं.....
तुम भी वहां सुन्दर सपनों को तजती हो क्या??

मैं यहां रोज तेरा रास्ता तका करता हूं.....
तुम भी वहां कभी ख़्वाब सजा सकती हो क्या??

मैं यहां सिर्फ तुझ में ही डूबा रहता हूं.....
तुम भी वहां कभी आखों में पानी रखती हो क्या??

मैं यहां आजकल खुद में खुश रहता हूं.....
तुम भी वहां खिलखिला के बच्चों सी हंसती हो क्या??

मैं यहां नई-नई कविताऐं गढ़ता रहता हूं.....
तुम भी कहीं किसी दुनिया में सच में बसती हो क्या??
💌💌 

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...