Followers

Saturday, February 4, 2023

उम्मीद की सड़क, ✍️ हेमंत कुमार

उम्मीद की सड़क 🛣️🛣️

इस गांव से जो ये उम्मीद की सड़क शहर को जाती है।
ना जाने कितने रंग~बिरंगे ‘सपनों’ को पंख लगाती है।।

वो लड़की जो बीते बरस कम्प्यूटर सीखने जाती थी।
अब अपनी उंगलियों पर उस कम्प्यूटर को नचाती है।।

वो मां जिसका कलेजा.....
उसके वापस ना आने तक धक~धक करता था।
आज उसकी कामयाबी पर फूले नहीं समाती है।।

वो लड़का जो चार बरस पहले शहर कुछ बनने गया था।
अब हिन्दुस्तान की फ़ौज में एक बड़ा ‘अफसर’ बना है।।

वो बाप जो दिन रात....
बस इस सोंच में रहता था कि ये कर्ज कैसे उतरेगा।
आज बडे ही गर्व से अपनी ‘मूंछों’ पर ताव देता है।।

वो किसान जिसकी फसलें खेत में ही सड़ जाती थीं।
अब कुछ मिनटों में शहर की मंडी में पहुंच जाती हैं।।

वो बच्चा जो हमेशा....
बस इस उम्मीद में रहता था काश मैं भी स्कूल जा पाऊं।
आज नई कमीज पहन कर साइकिल से स्कूल जाता है।।

वो डॉक्टरनी जो गांव में आने से सदा ही कतराती थी।
अब बस से गांव में समय से पहले दौड़ी चली आती है।

वो बूढ़ी दादी जो....
बस अपनी बीमारी को लेकर हमेशा परेशां ही रहती थी।
आज अपने पोते संग खूब खेलती, हंसती, मुस्कुराती है।।

यकीनन.....
उस शहर से जो ये उम्मीद की सड़क गांव को आती है।
ना जाने कितने हताश हुए दिलों को मरहम लगाती है।।
🧑‍⚕️👩‍🔬🧑‍✈️👩‍💻

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, December 31, 2022

काश....!!!, ✍️ हेमंत कुमार

काश....!!! 🍁🍁

काश! मैं पहन सकूं
मुलायम, उजली-उजली 
नर्म धूप को और
बंदोबस्त कर सकूं....
आने वाली ‘कड़कड़ाती’
सर्दियों का।

काश! मैं जला सकूं
पुरानी, दिलकश, खुशनुमा
यादों को और 
इंतजार कर सकूं....
फिर से नई कोपलें खिलाने वाले
मौसम का।

काश! मैं पुकार सकूं
खुद को तुम्हारा नाम लेकर
चुपके से और
अहसास कर सकूं.....
तुम्हारी अनकही, अनसुनी
पीड़ा का।

काश! मैं लिख सकूं
अपनी कलम से तुम्हारा हाल
हू-ब-हू और
स्थापित कर सकूं.....
सही मायनों में नया आयाम   
इबादत का।

काश! मैं उतार सकूं
अपनी खुरदरी हो चुकी त्वचा
खुरच कर और
महसूस कर सकूं.....
आनंद गिले-शिकवों, नाउम्मीदी के 
जाने का।

काश! मैं पहन सकूं
मुलायम, उजली-उजली 
नर्म धूप को और
बंदोबस्त कर सकूं....
आने वाली ‘कड़कड़ाती’
सर्दियों का।
⛄⛄

✍️ हेमंत कुमार

एक मासूम परिंदा, ✍️ हेमंत कुमार

एक मासूम परिंदा 🔖🔖

पेड़ की ऊंची शाख पर जा बैठा, एक ‘मासूम’ परिंदा वो।
अंदाजे से कहां पता लगता है कि जंगल में आग लगी है।।

अपनों से भी अब जरा—सा बच के ही चलने लगा है वो।
जब से पता लगा है उसे कि ‘सब’ रिश्तों में आग लगी है।।

सिगरेट फूंक~फूंक के सब धुआं~धुआं करता रहा है वो।
अब जा के मालूम हुआ है उसे कि फेफड़ों में आग लगी है।।

बड़ी-बड़ी खबरें लगी है कि बड़े ही ‘मजे’ से जी रहा है वो।
किसी को क्या पता कि बाजार में कीमतों में आग लगी है।।

बीच मझ–धार में ही अकेला छोड़ के चला गया है मुझे वो।
तब जा के अहसास हुआ कि ‘दिल’ में कैसी आग लगी है।।

सब कुछ जगमग नज़र आ रहा था, जब आया शहर में वो।
दूर से कहां पता लगता है कि अजनबी शहर में आग लगी है।।
🌋🌋

✍️ हेमंत कुमार

स्टाइल ए यार, ✍️ हेमंत कुमार

स्टाइल ए यार 🕺🕺

उमड़ते समंदरों का ‘साहिल’ होना शौक में शुमार है उसके।
शोहरतों की फेहरिस्त में शामिल होना मिज़ाज में है उसके।।

प्यार, इश्क और मोहब्बत की अलग ही परिभाषा गढ़ता है। 
दिल-विल लगाने के बिल्कुल अलग से ही हैं अंदाज उसके।।

जिंदगी को अजीब सी, उलझी हुई सी पहेली बना के रखा है।
सबसे अलग हटके ही तय किए गए होंगे सब आयाम उसके।।

दौलत बेशुमार लिखी है किस्मत में, रुपया एक नहीं होता है।
बस आज की ही फिक्र करता है, देखो कैसे ख्याल हैं उसके।।

ढंग उसका लिखने-लिखाने का बेतकल्लुफ,बेतरतीब सा है।
सिर्फ दिल ही नहीं अपनी ‘कलम’ भी कहाँ बस में है उसके।।

स्टाइल -ए- यार ऐसा है कि सब से गले लग के मिलता है।
प्रेम की ऐसी गंगा बहाता है कि सब लोग ‘मुरीद’ हैं उसके।।
🤟🤟

✍️ हेमंत कुमार

कितना मुश्किल होता है ना!, ✍️ हेमंत कुमार


कितना मुश्किल होता है ना! 💫💫

कितना मुश्किल होता है ना!
उसी के शहर से गुजरना....
उसे बताए बगैर....
और उसे ही याद ना करते हुए....

कितना मुश्किल होता है ना!
अपनों से सारे गम छुपाना....
मुस्कुराते हुए रहना....
और खुद को कमज़ोर ना होने देना....

कितना मुश्किल होता है ना!
सुबह-सुबह पार्क में टहलना....
ओस की बूंदों को छूना....
और किसी का स्पर्श महसूस ना होना....

कितना मुश्किल होता है ना!
छुट्टी के दिन घर में सुस्ताना....
फुर्सत से कॉफी पीना....
और कोई भी खास लम्हा याद ना आना....

कितना मुश्किल होता है ना!
सांझ ढले छत पर घूमना....
धीमे से गाने गुनगुनाना....
और दिल में किसी का अक्स ना बनना....

कितना मुश्किल होता है ना!
ढलती शाम में सूरज को देखना....
पलक झपकाए बिना....
और हौसलों का जरा सा भी कम ना होना....

कितना मुश्किल होता है ना!
बड़े से पेड़ का एकदम ठूंठ हो जाना....
धीरे-धीरे मर जाना....
और किसी के कोई ‘काम’ ना आना....


कितना मुश्किल होता है ना! 
किसी साल का ऐसे गुजर जाना....
बिल्कुल खामोश होकर....
और खाली हाथ में सिर्फ लकीरें रह जाना....

हाँ‼️सच में बहुत मुश्किल होता है....
सब कुछ छोड़ कर सफ़र पर निकल लेना....
कुछ पाने के लिए नहीं....
सब कुछ “खो” देने के लिए.....
🍂🍂

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...