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Tuesday, September 20, 2022

खुशबू, ✍️ हेमंत कुमार

खुशबू  🥀🥀

महज़ उसकी ‘खुशबू’ कुछ इस कदर असर करती है।
जैसे ‘बारिश’ की वो नन्हीं बूंदें मिट्टी में बसर करती है।।

बरसों पहले लगाया था हमने इक शजर मोहब्बत का।
उसी के घने साए तले अब हमारी शामें बसर करती हैं।।

हर आते-जाते शख्स को धोखा होता रहा है नज़र का।
हमारी हर मुलाकात कुछ इस तरह का असर करती है।।

उसका अंदाज़- ए- बयां सबसे ‘जुदा’ है इस कदर का।
उसकी हर इक ‘अदा’ मेरे पांव जमीं से अधर करती है।।

अब तो हाल ये है मुझ पे उसकी अदाओं के असर का।
उसकी हर इक सांस अब मेरी सांसों में बसर करती है।।

खुदा की करामात ही मानिए वो ‘साथी’ बना सफ़र का।
उसकी कजरारी आंखें अब हर असर-बेअसर करती है।।
💟💟

✍️ हेमंत कुमार

बसर– जीवन यापन (गुजर बसर)
शजर– पेड़

बारिश, ✍️ हेमंत कुमार

बारिश 🌧️🌧️

एक अजीब सी खुशबू 
मिट्टी से आ रही है।
मेरे यहां बारिश आ रही है।।

बूंदों की टप~टप, टप~टप
की आवाज आ रही है।
रोम रोम में मस्ती छा रही है।।

पानी में दूर कागज की एक
किश्ती आ रही है।
मुझे बचपन में ले जा रही है।।

आज फिर मेरे स्कूल की
छत टपक रही है।
आज फिर मेरे मन की हो रही है।।

अब बादलों को ये कैसी 
जल्दी हो रही है।
खेतों में फसल जलमग्न हो रही है।।

लाे जिसका इंतजार था
वो भी आ रही है।
मुझे ये तेरी याद, कहां ले जा रही है।।

आज फिर बूंदों की वही
शरारत हो रही है।
आज फिर एक हिमाकत हो रही है।।
🌈🌈

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, August 23, 2022

मदहोश सावन, ✍️ हेमंत कुमार

मदहोश सावन 🌦️🌦️

ये सावन....
जिसको चाहे....
उसको मदहोश कर दे....

ये मौसम.....
जब-तब चाहे.....
मन में हिलोरे उठा दे.....

ये बादल....
जिधर चाहे....
मौसम सुहाना कर दे....

ये बारिश....
जिसको चाहे....
उसको बेहोश कर दें....

ये पतंगें.....
जिसकी छत पे चाहे.....
लहरा के प्यार के पेंचे लडा दे.....

ये तीज.....
जब बीज चाहे.....
धरती पर अंकुरित कर दे.....

ये नदियां....
जिधर चाहें....
मचलकर उधर चल दें.....

ये भक्त्ति.....
जब शिव चाहें.....
सती को पार्वती कर दें.....

ये सावन....
जिसको चाहे....
उसको मदहोश कर दे....
उसको मदहोश कर दे....
🌱🌱

✍️ हेमंत कुमार

तलाश-ए-जिंदगी, ✍️ हेमंत कुमार

तलाश-ए-जिंदगी ☘️ ☘️

इक अरसे से...
मैं ‘तलाश’ में हूं...
एक सुकून भरे दिन की...

जिसमें...
किसी झोंपड़ी में बैठ कर...
बुन सकूं आधे-अधूरे ख्वाबों को...

जिसमे...
सुलगा सकूं... 
फुर्सत से पुरानी यादों का हारा....

जिसमें...
संजो सकूं...
बचपन के सुनहरे पलों को...

जिसमे...
मिल सकूं...
अपने खुद के वजूद से...

जिसमें...
खर्च कर सकूं...
खुद पर कुछ कीमती पल...

जिसमें...
दफ़न कर सकूं...
गुजरे वक्त की तन्हाइयां...

जिसमें...
महसूस कर सकूं...
तेरी तैरती परछाइयां...

जिसमें...
खोल सकूं...
द्वार गहरे अंतर्मन के...

जिसमें...
आह्वान कर सकूं...
सभी अदृश्य शक्तियों का...

जिसमें...
नंगी आखों से देख सकूं...
अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को...
☠️☠️

✍️ हेमंत कुमार 

*हारा- गोबर के उपले जलाकर कुछ पकाने का स्थान, जिसमें धीमी-धीमी आंच सुलगती रहती है।

आवाज का जादू, ✍️ हेमंत कुमार

आवाज का जादू ✨✨

आज फिर कानों में ‘गूंजी’ है आवाज उसकी।
आज फिर से ‘जान’ में ‘जान’ आई है उसकी।।

उसकी बातें, उसकी यादें, बस ‘उसका’ ही तो है सुरूर।
क्यों ना हो उसका जुनूं ? बस वो ही तो है उसका गुरुर।।

उसकी खनकती आवाज का ही तो है ये जादू।
उसका उस पर ही नही रह पाता है कोई काबू।।

ये दुआ है मेरी,‘रहमत’ सदा बनी रहे उसकी। 
क्योंकि उसमें ही तो अटकी हैं ‘सांसे’ उसकी।।
💓💓
जय श्री कृष्णा। 🙏

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...