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Sunday, April 9, 2023

अधूरे ख़्वाब, ✍️ हेमंत कुमार


अधूरे ख़्वाब 🌌🌌

उदास शामें
जब घने अंधेरे
के आगोश में
समाने लगती हैं....

तब तुम्हारा
वही पुराना, मखमली
ख्याल अमूमन मुझे
ऐसे जकड़ लेता है....

जैसे प्रेम में
कोई बच्चा अपने
जिगरी दोस्त को
कस के बाहों में ले लेता है....

आह..! उन दिनों के 
बाद ‘हम’ कब मिल
पाए हैं फुर्सत भरी
गर्मी की लंबी शामों में....

उस मॉल में 
रेस्तरां की सबसे कोने 
वाली बेंच आज भी जैसे
हमारे इंतजार में खाली है....

बहुत लंबे
फासलों को अक्सर
गुजरते वक़्त की
रफ़्तार ही पाटती है....

वक़्त के मुकर्रर 
किए गए दिन हम-तुम 
और हमारे अधूरे ख़्वाब
ऐसे मिलेंगे....

जैसे जून के महीने में
किसी धुंधली सी शाम में
धरती और आकाश मिलते
हैं ‘क्षितिज’ के उस पार....
🏜️🏜️

✍️ हेमंत कुमार

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