कौन है वो, कहां है वो, जिसके “तलबगार” से हैं हम।
अब उसे कहां ढूंढे, जिसके बरसों से इंतजार में हैं हम।।
जब से मिले हैं उससे, बस ‘एक-दम’ ठगे से गए हैं हम।
अंदाज-ए-कातिल ही कुछ ऐसा है और क्या बताएं हम।।
ये नजरों का धोखा नहीं, सच में, ‘जान’ से, गए हैं हम।
तुम ही कहो, इस ‘जुर्म’ की ‘रपट’ कहां लिखवाएं हम।।
तीर जाके ठीक ‘निशाने’ पर लगा है, मान से गए हैं हम।
अब इस पर कोई ‘मरहम’ लगा दे,‘बेदम’ से हो गए हम।।
जब से पुकारा है मुझे मेरे नाम से,‘पगला’ से गए हैं हम।
इतनी शिद्दत थी उस लहजे में, करें भी तो क्या करें हम।।
मामला ये दिलों का है और ‘बेपरवाह’ से हो गए हैं हम।
अब खुदा जाने क्या होगा,‘मस्तमौला’ से हो गए हैं हम।।
☘️☘️
✍️ हेमंत कुमार
No comments:
Post a Comment