ये नीला-सफेद ‘स्वेटर’ महज एक स्वेटर नहीं है.....
मेरे ‘दिल’ के बड़े गहरे ‘जज़्बात’ जुड़े है इससे.....
यही स्वेटर पहना था मैंने:
जब बसंती मौसम में अनायास ही मिले थे हम.....
जब पहली दफा बैठे थे हम कैफे ‘कॉफ़ी डे’ में सुकचाते हुए.....
जब हमने इज़हार किया था एक दूसरे से अपनी बेपनाह मोहब्बत का.....
ये स्वेटर मैं गाहे-बगाहे पहन लेता हूं जब भी पाता हूं खुद को तुम्हारे बेहद ‘करीब’ सारी दीन-दुनिया से परे.....
ये कपड़े बोल नहीं पाते, मगर....
इनके रंग, इनकी महक, इनकी गुलझटें
कितना कुछ कह देती हैं बिना कुछ कहे.....
अगली बार तुम भी पहन कर आना वही पुराना लाल जैकेट और वही खूबसूरत सी मुस्कान लाना अपने चेहरे पर.....
तुम फिर से आना अगली सर्दियों में, मगर शर्त ये है कि अपनी आंखों में फिर से वही ‘चमक’ लाना तुम.....
तुम्हें मालूम है तुम्हारी ‘आंखों’ की चमक से ‘रोशनी’ मिलती है अंधेरी रातों में देखे गए मेरे ‘सपनों’ को.....
🙂🙂
✍️ हेमंत कुमार