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Monday, April 18, 2022

बेकरारी, ✍️ हेमंत कुमार

बेकरारी 🎋🎋

इन बसंती फिजाओं में आजकल ये कैसी खुमारी सी है।
इस खाली पड़े दिल में आजकल ये कैसी बेकरारी सी है।।
 
सारी ‘उलझने’ सुलझी ~ सुलझी सी थी एक ‘जमाने’ से।
इन मद्धम सी बहती हवाओं में अब ये कैसी बेजारी सी है।।

‘सांझ’ ढले ये मन इन दिनों कहीं खोया सा रहने लगा है।
आधी कच्ची ~ पक्की सी उम्रों में ये कैसी ‘बीमारी’ सी है।।

एक साया बेतरतीब सा उलझा हुआ है इन सांसों में जैसे।
कोई बताए अब इन धड़कनों पर ये कैसी पहरेदारी सी है।।

उम्मीदों के मुताबिक़ कहां फैसले हो पाए हैं दिल वालों के।
सांसे चल रही हैं, धड़कनें ठहरी हैं, ये कैसी लाचारी सी है।।

इक जमाने से रिहाई की ‘उम्मीद’ लगाए बैठी हैं वो आखें।
लब खामोश हैं, नजरें झुकी है, अब ये कैसी इंकारी सी है।।
🍁🍁

✍️ हेमंत कुमार

कैक्टस, ✍️ हेमंत कुमार

कैक्टस 🌵🌵

हां....हमने भी दिया है उस कैक्टस में पानी....
हमने भी संभाली हैं वो तैरती कविता/कहानी....
तेरे जाने के बाद.....
हां, तेरे जाने के बाद....

देखी है हमने उदास सी ग्रीन टी....
देखा है निढाल सा शहद हमने....
तेरे जाने के बाद.....
हां, तेरे जाने के बाद....

फिर देखा है हमने खुद को बिखरते....
और देखा है उस चांद को संभालते हमें....
तेरे जाने के बाद.....
हां, तेरे जाने के बाद....

हमने भी झेला है वो खामोश सा सन्नाटा.....
कुमलाई सी वो कोपलें भी देखी हैं हमने.....
तेरे जाने के बाद....
हां, तेरे जाने के बाद....

और फिर सुबह उठ कर....
हमने भी दिया है उस कैक्टस में पानी....
हमने भी संभाली हैं वो तैरती कविता/कहानी....
तेरे जाने के बाद.....
हां, तेरे जाने के बाद....
💝💝

✍️ हेमंत कुमार

पृथ्वी, ✍️ हेमंत कुमार

पृथ्वी 🌏🌏 

इतना मुश्किल वक़्त पृथ्वी पे यूं ही तो,ना आया होगा।
हमने भी,धरती की आत्मा को,खूब ही तड़पाया होगा।।

पिंघला दिए बड़े बड़े ग्लेशियर, तबाह कर दी नदियां।
कमाल की बात है इसमें हमें लगी सिर्फ 20 सदियां।। 

हर किसी की जुबान पर शान्ति, और "बुद्ध" ही है यहां।
पर कोई ऐसा मुल्क नहीं जिसने "युद्ध" ना लड़े हो यहां।।

कितना मासूम है ये इंसा,कितना भोला सा है ये मानव।
जात,धर्म के नाम पे,जब चाहे तब बन जाता है दानव।। 

दूध में जहर है,सब्जियों में जहर है,अनाज में जहर है।
और अब जान पर आन पड़ी तो ये "खुदा" का कहर है।। 

खा लिए हमने सारे जंगल, कर दी धरती हमने बंजर।
आज इतने हैरां क्यों हैं हम देख के ये डरावना मंजर।। 

तोड़ लिए "परिवार",बना लिए सबने अपने अपने "घर"।
अब इस "मुसीबत" में "अकेलेपन" से ही लगता है डर।। 

लाइलाज बीमारी से भी ज्यादा घातक है ये इंसानी लूट।
मौका मिलते ही, यही लालची इंसान रहा है चांदी कूट।। 

सब, पाक साफ हैं यहां,चाहे नेता हो या बड़े अधिकारी।
अदालत यहां रोज पूछ रही,किसकी क्या है जिम्मेदारी।।
🎭🎭 

✍️ हेमंत कुमार

शिद्दत, ✍️ हेमंत कुमार

शिद्दत 🌸🌸


बड़ी ही “शिद्दत” से मुझे चाहता है वो अब तक।

इस तरह से वो शख्स मेरा “सुकून” बन गया।।


उसकी “चाहतें” मेरे होश उड़ा देती हैं अब तक।

इस तरह से वो शख्स मेरा “जुनून” बन गया।।


बैठा था “पहलू” में आके,गया नही हैं अब तक।

इस तरह से वो शख्स मेरा “अपना” बन गया।।


आंख मूंदते ही वही “नजर" आता है अब तक।

इस तरह से वो शख्स मेरा “सपना” बन गया।।


उसकी “खुशबू” बदन से लिपटी है अब तक।

इस तरह से वो शख्स मेरा “हिस्सा” बन गया।।


कतरा कतरा करके बरसा है “इश्क” अब तक।

इस तरह से वो शख्स मेरा “किस्सा” बन गया।।

🌼🌼

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, March 19, 2022

रंग ‘प्रेम’ का, ✍️ हेमंत कुमार


 

    रंग ‘प्रेम’ का 

🌼💮🏵️🌸🌼


मैं अपने ‘प्रेम’ के रंग में रंग लेना चाहता हूं तुम्हें।

मैं अपनी ही चाहतों में डूबो लेना चाहता हूं तुम्हें।।


होली के ‘हुड़दंग’ में बहकने लगी है पगली सी पवन।

मैं भी ‘ख्वाबों’ की दुनिया में ले जाना चाहता हूं तुम्हें।।


फाग खेल रहे हैं सब इस ‘खुशनुमा’ से मौसम में।

मैं भी गाल पर “गुलाल” लगाना चाहता हूं तुम्हें।।


मस्ती के इस ‘माहौल’ में मद~मस्त हुए हैं सब लोग।

मैं भी मजे में थोड़ी सी भांग पिलाना चाहता हूं तुम्हें।।


रंग~बिरंगी ‘पिचकारियां’ लिए घूम रहे हैं सब दीवाने।

मैं भी प्रेम के गहरे ‘रंग’ में भिगो देना चाहता हूं तुम्हें।।


उन्माद की हद तक छाई है ‘मदहोशी’ आसमान में।

मैं भी बस अपनी रूह में उतार लेना चाहता हूं तुम्हें।।

🪅🪅


✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...