इतना मुश्किल वक़्त पृथ्वी पे यूं ही तो,ना आया होगा।
हमने भी,धरती की आत्मा को,खूब ही तड़पाया होगा।।
पिंघला दिए बड़े बड़े ग्लेशियर, तबाह कर दी नदियां।
कमाल की बात है इसमें हमें लगी सिर्फ 20 सदियां।।
हर किसी की जुबान पर शान्ति, और "बुद्ध" ही है यहां।
पर कोई ऐसा मुल्क नहीं जिसने "युद्ध" ना लड़े हो यहां।।
कितना मासूम है ये इंसा,कितना भोला सा है ये मानव।
जात,धर्म के नाम पे,जब चाहे तब बन जाता है दानव।।
दूध में जहर है,सब्जियों में जहर है,अनाज में जहर है।
और अब जान पर आन पड़ी तो ये "खुदा" का कहर है।।
खा लिए हमने सारे जंगल, कर दी धरती हमने बंजर।
आज इतने हैरां क्यों हैं हम देख के ये डरावना मंजर।।
तोड़ लिए "परिवार",बना लिए सबने अपने अपने "घर"।
अब इस "मुसीबत" में "अकेलेपन" से ही लगता है डर।।
लाइलाज बीमारी से भी ज्यादा घातक है ये इंसानी लूट।
मौका मिलते ही, यही लालची इंसान रहा है चांदी कूट।।
सब, पाक साफ हैं यहां,चाहे नेता हो या बड़े अधिकारी।
अदालत यहां रोज पूछ रही,किसकी क्या है जिम्मेदारी।।
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✍️ हेमंत कुमार
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