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Saturday, March 19, 2022

रंग ‘प्रेम’ का, ✍️ हेमंत कुमार


 

    रंग ‘प्रेम’ का 

🌼💮🏵️🌸🌼


मैं अपने ‘प्रेम’ के रंग में रंग लेना चाहता हूं तुम्हें।

मैं अपनी ही चाहतों में डूबो लेना चाहता हूं तुम्हें।।


होली के ‘हुड़दंग’ में बहकने लगी है पगली सी पवन।

मैं भी ‘ख्वाबों’ की दुनिया में ले जाना चाहता हूं तुम्हें।।


फाग खेल रहे हैं सब इस ‘खुशनुमा’ से मौसम में।

मैं भी गाल पर “गुलाल” लगाना चाहता हूं तुम्हें।।


मस्ती के इस ‘माहौल’ में मद~मस्त हुए हैं सब लोग।

मैं भी मजे में थोड़ी सी भांग पिलाना चाहता हूं तुम्हें।।


रंग~बिरंगी ‘पिचकारियां’ लिए घूम रहे हैं सब दीवाने।

मैं भी प्रेम के गहरे ‘रंग’ में भिगो देना चाहता हूं तुम्हें।।


उन्माद की हद तक छाई है ‘मदहोशी’ आसमान में।

मैं भी बस अपनी रूह में उतार लेना चाहता हूं तुम्हें।।

🪅🪅


✍️ हेमंत कुमार

कोहरा, ✍️ हेमंत कुमार

 कोहरा 🌁🌁


ये जो ‘कोहरा’ सा छा रहा है आसमान में ‘धुआं’ तो नहीं।

वो जो बे~वजह सा ही चाहता है तुमको ‘धोखा’ तो नहीं।।


ये सड़क बडी गुम-सुम सी है, आज कहीं इतवार तो नहीं।

वो जो कर रहा है मोलभाव, कहीं कोई खरीददार तो नहीं।।


मेहरबां, हमें मालूम है, इश्क इक रास्ता है मंजिल तो नहीं।

वो भी जानते हैं वो मर्ज़ी के मालिक हैं किरायेदार तो नहीं।।


उसको जमाने लगेंगे हमें समझने में, कोई शिकवा तो नहीं।

हर कोई पढ़ ले हमें बड़े शौक से, हम कोई इश्तहार तो नहीं।


उसकी बेबसी कोई क्या समझेगा, वो कोई दीवाना तो नहीं।

हवा खिलाफ चली है दीये के, सच है ये, अफसाना तो नहीं।।


सब कुछ ‘सच’ ही कहा था उसने, मगर वो ‘काफी’ तो नहीं।

साबित कर देगा वो ‘बेगुनाही’ भी, मगर ये ‘इंसाफ’ तो नहीं।।


बहुत ऊंचे हैं सत्ता के ‘सिंहासन’, इन्हें नीचे दिखता तो नहीं।

‘इंसाफ’ होता होगा फाइलों में, हकीकत में मिलता तो नहीं।।

🌪️🌪️


✍️ हेमंत कुमार

उम्मीद से ज्यादा, ✍️ हेमंत कुमार

उम्मीद से ज्यादा 🌠🌠


बारिशों सा है इश्क उसका, जब भी बरसा, बेहिसाब बरसा।

इतना कभी ना बरसा था वो जितना के अब के बरस बरसा।।


सबको मालूम है, कौन किसको यूहीं बेसबब चाहता है यहां।

शुक्रगुजार हूं उसका वो हमेशा मेरी उम्मीद से ज्यादा बरसा।।


गर्दिश में, दर्द में, मुफलिसी में, सब साथ छोड़ जाते हैं यहां।

कितना पाबंद है वो अपने वादे का, गमों में आखों से बरसा।।


बहुत दूर जा कर के, कब कोई लौट के वापस आया है यहां।

जब कभी भी आई याद उसकी वो हमेशा बादलों से बरसा।।


गुजरे वक़्त में बहुत कम आमना सामना हुआ है उससे मेरा।

गमों की जरा सी भी आहट हुई, तो वो फुहार बन के बरसा।।


‘मौसमों’ को आखिर बदलना ही होता है और वो बदल गए।

खैर जब भी पुकारा मैने उसे वो आ के मेरे ख्वाबों में बरसा।।


तय हुआ था करार हमारे उसके बीच कभी ना बिछड़ने का।

जैसे ही पुकारा उसको मैंने, मचल के वो मेरी छत पे बरसा।।

🍄🍄


✍️ हेमंत कुमार

चुनावी बेला, ✍️ हेमंत कुमार

 चुनावी बेला📮📮


अंधेरा ना घेर पाए उजालों को.....

चलो अब जतन करते हैं....


उम्मीदें ना टूट जाएं गरीबों की.....

चलो अब जतन करते हैं....


निवाला मिल सके हर किसी को....

चलो अब जतन करते हैं....


शिक्षा का अवसर पाए हर बच्चा....

चलो अब जतन करते हैं....


नेताओ के झूठे वादों पर रोक लगे....

चलो अब जतन करते हैं....


व्यवस्था परिवर्तन पर सब बात करें....

चलो अब जतन करते हैं....


किसान हो समृद्ध,अच्छी हो पैदावार....

चलो अब जतन करते हैं....


युवाओं के मन को भी कोई जान सकें....

चलो अब जतन करते हैं....


आधी आबादी की भी हो पूरी भागीदारी....

चलो अब जतन करते हैं....


इस चुनाव में बस जन प्रतिनिधि ही जीते....

चलो अब जतन करते हैं....


कहने को तो थे हम भी ‘विश्व गुरु’ कभी....

चलो अब जतन करते हैं....


चलो अब की बार जतन करते हैं....

इस बार सही जगह वोट करते हैं....

🙌🙌


✍️ हेमंत कुमार

Thursday, February 17, 2022

जाड़े की धूप, ✍️ हेमंत कुमार

 जाड़े_की_धूप 😶‍🌫️😶‍🌫️


ये अलसाई सी जाड़े की धूप और उसपे ख़्याल तुम्हारा ।

बहा ले जाता है मुझे उन सुनहरी यादों के गहरे समुंद्र में।।

                                                        

ये जनवरी का घना सा कोहरा और हंसता चेहरा तुम्हारा।

उड़ा ले जाता है मुझे उन पुरानी ‘राहों’ पर तुम्हारे साथ में।।


ये तिल की गज्जक, चाय की चुस्की और कमाल तुम्हारा।

चला ले जाता है मुझे उन कातिल जज्बातों की दुनिया में।। 


ये पुरानी सी गुलाबी स्वेटर और ‘महरून’ मफ़लर तुम्हारा।

घेर ले जाता है मुझे उन अल्हड़ बेफिक्र जवानी के दिनों में।।


ये कड़कड़ाती सर्दी की ठिठुरन और जलता अलाव तुम्हारा।

तैरा ले जाता है मुझे उन गर्माहट भरे एहसासों के भंवर में।।


ये घने कोहरे का गायब होना और फिर ना मिलना तुम्हारा।

लौटा ले जाता है मुझे उन बेगानी सी घुटन भरी गलियों में।।

🌁🌁


✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...