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Friday, January 31, 2025

नीला सफेद स्वेटर, ✍️ हेमंत कुमार

नीला सफेद स्वेटर 🗻🗻

ये नीला-सफेद ‘स्वेटर’ महज एक स्वेटर नहीं है.....
मेरे ‘दिल’ के बड़े गहरे ‘जज़्बात’ जुड़े है इससे.....

यही स्वेटर पहना था मैंने: 

जब बसंती मौसम में अनायास ही मिले थे हम.....
जब पहली दफा बैठे थे हम कैफे ‘कॉफ़ी डे’ में सुकचाते हुए.....
जब हमने इज़हार किया था एक दूसरे से अपनी बेपनाह मोहब्बत का.....

ये स्वेटर मैं गाहे-बगाहे पहन लेता हूं जब भी पाता हूं खुद को तुम्हारे बेहद ‘करीब’ सारी दीन-दुनिया से परे.....

ये कपड़े बोल नहीं पाते, मगर....
इनके रंग, इनकी महक, इनकी गुलझटें 
कितना कुछ कह देती हैं बिना कुछ कहे.....

अगली बार तुम भी पहन कर आना वही पुराना लाल जैकेट और वही खूबसूरत सी मुस्कान लाना अपने चेहरे पर.....

तुम फिर से आना अगली सर्दियों में, मगर शर्त ये है कि अपनी आंखों में फिर से वही ‘चमक’ लाना तुम.....

तुम्हें मालूम है तुम्हारी ‘आंखों’ की चमक से ‘रोशनी’ मिलती है अंधेरी रातों में देखे गए मेरे ‘सपनों’ को.....
🙂🙂

✍️ हेमंत कुमार

Sunday, January 5, 2025

एक और कहानी, ✍️ हेमंत कुमार

एक और कहानी ❤️🐦

एक जमाना था.....एक ‘राजा’ था, एक ‘रानी’ थी।
खत्म हुई अब वो परियों की/ महलों की सब कहानी है।।

मेरा फोन यूं ही भरा पड़ा है ‘उसकी’ पुरानी तस्वीरों से।
मेरा दिल यूं ही ‘वीरान’, इक अरसे से ‘बिल्कुल’ खाली है।।

वो समझा ही नहीं कभी मेरे दिल के उन जज्बातों को।
उसको शायद ‘इल्म’ भी नहीं, अब वो सब बातें पुरानी हैं।।

फिर कल सांझ एक चिड़िया आकर बैठी मेरे ‘आंगन’ में।
हंसते हुए बोली पहचाना नहीं, “पहचान” हमारी पुरानी है।।

मैंने कहा वो राजा/रानी, वो कहानी, वो सब बातें पुरानी हैं।
वो मुस्कुराई फिर बोली, वो रात गई, ये नई ‘सुबह’ निराली है।।

फुदककर बैठी वो मेरे कांधे पर, कभी मेरे माथे को सहलाई।
मैं कल फिर से आऊंगी, अब मैं ये “दोस्ती” यूं ही निभाऊंगी।।

हंसकर बोली, बैठो ना यूं उदास, यही जीवन/ यही कहानी है।
हम सब को यूं ही अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी है।।
🤍🕊️

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, December 17, 2024

मन का मौसम, ✍️ हेमंत कुमार

मन का मौसम 🌻🌺

अहा! फिर से मन का मौसम आ गया है.....
खिली-खिली धूप भी मन को भाने लगी है।
उदासी जो छाई थी महीनों से जाने लगी है।।
ठंडी हवा चेहरे की ‘मुस्कान’ बढ़ाने लगी है।
वही पुरानी नीली स्वेटर मुझे सुहाने लगी है।।

अहा! फिर से मन का मौसम आ गया है.....
याद है तुम्हें वो पिछले सालों की सर्दियां अपनी।
याद है तुम्हें वो ढेर सारी ‘शायराना’ बातें अपनी।।
याद है तुम्हें वो “अलाव” सी तपती सांसें अपनी।
याद है ना तुम्हें वो अधूरी सी ‘मुलाकातें’ अपनी।।

अहा! फिर से मन का मौसम आ गया है.....
ये लो फिर से दिल्ली में इक बार “जश्न ए रेख़्ता” आ गया है।
ये लो फिर से तुम पर ‘मर-मिटने’ का “मौसम” आ गया है।।
ये लो फिर से हमें तुम पर जान लुटाने का सलीका आ गया है।
ये लो फिर से इश्क की अदालत में इक मुकदमा आ गया है।।

अहा! फिर से मन का मौसम आ गया है.....
अबके मैं कर लूंगा ओस की बूंदों को अपनी मुट्ठी में बंद।
अबके मैं कर लूंगा कोहरे की चादर को अपनी सांसों में बंद।।
अबके मैं कर लूंगा सूर्य के ताप को अपनी आंखों में बंद।
अबके मैं कर लूंगा अपनी धडकनों को अपने ही सीने में बंद।।

अहा! फिर से मन का मौसम आ गया है.....
चलो फिर से एक बार अपने मन की कर लेता हूं।
चलो फिर से एक बार इन सर्दियों को जी लेता हूं।।
चलो फिर से एक बार तुम्हें रोज़ याद कर लेता हूं।
चलो फिर से एक बार मन का मौसम जी लेता हूं।।
🫠🫠

✍️ हेमंत कुमार

Wednesday, December 4, 2024

कहानी अनकही, ✍️ हेमंत कुमार

कहानी अनकही- 2 🌺🌻

उसकी कहानी में इक “गज़ब” का किरदार हूं मैं।
उसकी कहानी में इक ‘असल’ का दिलदार हूं मैं।।

आए बहुत से “आनी-फ़ानी” उसकी जिन्दगी में।
उसकी हर सुनी अनसुनी कहानी में नमूदार हूं मैं।।

कच्चा पक्का सा इश्क रहा है कच्ची पक्की उम्रों में।
उसकी सारी आधी-अधूरी चाहतों का हकदार हूं मैं।।

अजीब सी कशिश और नादानी है मेरी चाहतों में।
उसकी हर मौसम की बेवफ़ाईयों में वफादार हूं मैं।।

लबों पर आके कुछ ठहर सा जाता है मेरी सांसों में।
उसकी तमाम अनकही कहानियों का राजदार हूं मैं।।

वक्त की रवानी में, जवानी में, इस ढलती जिंदगानी में।
उसकी हर कहानी में इक किस्सा बेहद ‘यादगार’ हूं मैं।।
❤️

✍️ हेमंत कुमार 

फ़ानी- नष्ट होने वाला.....
नमूदार- नितांत साफ़, जो स्पष्ट दिखाई देता हो.....

Sunday, September 29, 2024

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆

बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा।
तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।।

हर तरफ ‘बेहिसाब’ मसले हैं इस हंसती~खेलती दुनिया में।
अपने खुद के गढ़े हुए किरदार से जुदा हो के कहां जाऊंगा।।

आधा सा चांद टूट के बिखरा हुआ है धान के खाली खेतों में।
अब ये बता इस ‘गज़ब’ के मयकदे का हो के कहां जाऊंगा।।

गम है, खुशी है, कमी है, हंसी है, मुफलिसी है, तिजारत है।
चलो ठीक है, सब है, मगर इन सब का हो के कहां जाऊंगा।।

इक तेज दरिया बह रहा है पहाड़ के आड़े~तिरछे आंगन से।
मैं खारा पानी हूं, मैं तेरी काली आंखों से हो के कहां जाऊंगा।।

इक उम्र लगती है तमन्नाओं के बड़े~बड़े महल खड़े करने में।
मैं तेरे दिल की तिलस्मी दुनिया से जुदा हो के कहां जाऊंगा।।
💟💟

✍️ हेमंत कुमार

बेचैन दिल की तमन्ना, ✍️ हेमन्त कुमार

बेचैन दिल की तमन्ना 🙇‍♂️🙇‍♂️ बेचैन दिल की तमन्ना है कि इस दिल को करार आ जाए। अब वो वक्त बीत चुका है, बस ये दिल इतना समझ जाए।। ...