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Sunday, October 8, 2023

जुगनू, ✍️ हेमंत कुमार

‘जुगनू’ 🐞

बेशक 
 मुझे 
‘चांद’
पसंद 
   है....
  पर 
  मुझे
  एक
‘जुगनू’ 
   से 
 बेहद 
 गहरा
 जुड़ाव 
    है....

 ‘चांद’
  ऊपर 
 बैठकर
  जाने
 कितने
  रूप
बदलता 
    है....
  मगर
  यहां
   ये
‘जुगनू’
  दिल
   में
उतरकर
  बस
सबकुछ
 रोशन
  कर
  देता
   है।
  ☘️

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, September 16, 2023

धागा मन्नत का, ✍️ हेमंत कुमार

#धागा_मन्नत_का 🎋🎋

मैं बांध के आया था
एक धागा मन्नत का....

पीपल के पेड़ पर....

जहाँ मुझ से पहले 
मांगी जा चुकी थी 
हजारों मन्नतें....

लेकिन मेरा हमेशा
अटूट विश्वास रहा है....
खुद पर, तुम पर 
और खुदा पर....

उस दिन के बाद से
मैंने पीछे मुड़ के
नहीं देखा....

मुझे वो सब मिला 
जो मैंने चाहा था
सिवाय ‘तुम्हारे’....

उस मन्नत में मैंने
बस तुम्हें मांगा था....
लेकिन मुझे मिला बस
इंतजार, एक ‘अंतहीन’
इंतजार....

फिर तो जैसे मन्नतों 
से भरोसा ही उठ गया....

अब मैं बस खुद से 
खुद ही मांग लेता हूं....
थोड़ी सी फुर्सत, 
थोड़ा सा सुकून, थोड़ी 
तन्हाई, थोड़ा इंतजार....

और उकेर देता हूं अपने
मन के उद्गारों को कागज़ पर....

ये मन्नतों के धागे मुझे
कभी नहीं पहुंचा पाएंगे
तुम तक....

लेकिन मेरी कविताएं
जरूर पहुंचेंगी तुम्हारी
रूह तक और हो जाएंगी 
अमर सदा-सदा के लिए....
📋📋

✍️ हेमंत कुमार

Saturday, August 19, 2023

गहरी उदासी, ✍️ हेमंत कुमार

#गहरी_उदासी 👤👤

बारिशों के मौसम में जब जी घबराने लगे,
दर्पण में देखने से जब ‘चेहरा’ कतराने लगे,
गहरी उदासी जब तन~बदन में छाने लगे,
अकेलापन जब भीतर से ‘खटखटाने’ लगे,

अपनी परछाई भी जब साथ छुड़ाने लगे,
बात~बेबात जब सूखी आखों से पानी आने लगे,
हर ओर जब रकीब ही रकीब मंडराने लगे,
जब हर बेहद ‘खुशनुमा’ सा ख़्याल मुरझाने लगे,

भीड़ में भी जब ‘तन्हाइयां’ घेरने लगे,
इंसाफ़ का तराजू भी जब बेसबब झूलने लगे,
सांसों पर भी जब पहरेदारी होने लगे,
चारों ओर जब घना काला ‘अंधेरा’ छाने लगे,

तब तुम रखना याद ‘हमेशा’, तब तुम रखना याद ‘हमेशा’

खुद ही करना पड़ेगा सब पुरषार्थ तुम्हें,
खुद ही बनना पड़ेगा अपनी ढाल तुम्हें,
खुद ही चलना पड़ेगा होके निढाल तुम्हें,
खुद ही रचना पड़ेगा नया इतिहास तुम्हें,

आएं लाख मुश्किलें बेशक, कोई तो ‘हल’ होगा।
मैदान में डटे रहो तुम,आज नहीं तो ‘कल’ होगा।।

हर रात के बाद, निश्चित ही एक नया सूर्य ‘उदय’ होगा।
उचित समय आने पर ही हर बीज नव ‘अंकुरित’ होगा।।

छटेगी गहरी उदासी, चेहरे पर कमल मुस्कुराएंगे।
बैठना तुम पास मेरे, हम मिल के खिलखिलाएंगे।।
🌸🌸

✍️ हेमंत कुमार

Sunday, July 30, 2023

कैनवास, ✍️ हेमंत कुमार

कैनवास 🎢

बीते कुछ अरसे से मेरी कलम 
साध नहीं पा रही है “शब्दों” को
शायद “शब्द” सीधे पहुंच रहे हैं
तुम तक.....

सुबह की नई किरणों के साथ
या.....
चांद की मद्धम सी “रोशनी” में 
या फिर.....
गहरी नींद में किसी खूबसूरत 
से “ख़्वाब” की परतों के बीच।

तुम उकेर देना उन शब्दों को
अपने “कैनवास” पर और छू
लेना उन उकेरे हुए शब्दों को
अपने “अधरों” से और जीवंत 
कर देना मेरी “कविताओं” को

....कि फिर कभी जब भी सूखा
पड़े तो नमी “महसूस” कर सकें
मेरे शब्द तुम्हारे “अधरों” की और
उम्मीदों के गीले रंग उधार ले सकें 
तुम्हारे “कैनवास” से....
🎨🖌️

✍️ हेमंत कुमार

Tuesday, July 18, 2023

अहसास, ✍️ हेमंत कुमार

अहसास 🏞️🌲

ये पथरीले संकरे रास्तों पर चलने का अहसास अच्छा है।
वो ‘जुगनू’ जो साथ चल रहा है बन के रोशनी, अच्छा है।।

एक ‘दरिया’ मुकम्मल होने के लिए बिछड़ता है पहाड़ों से।
वो बादल बन कर चूम रहा है ‘माथा’ पर्वतों का, अच्छा है।।

जिस वक़्त तपते हुए रेगिस्तान में नहीं मिलता कोई साया।
वो दीया अंधेरों में बे-वक़्त कर रहा है ‘उजाला’, अच्छा है।।

जंगलों में इस वक़्त पसरा हुआ है आलम घनी बेचैनी का।
वो पुरसुकून है अपने ‘मन’ की गहरी वादियों में, अच्छा है।।

बिना वक़्त की बारिशें अक्सर कर देती हैं तबियत नासाज़।
वो ‘एहतियातन’ छाता लेकर बाहर निकलता है, अच्छा है।।

लकड़हारे कर रहे हैं दावा हरे जंगलों के ”मसीहा” होने का।
वो सूखे पेड़ों में जिस मासूमियत से पानी दे रहा है,अच्छा है।।

बेहद मुश्किल है जंगलों के ‘रस्मों-रिवाज़’ को समझ पाना।
वो जंगली ‘फूल’ मानो मुझे देख के खिल रहा है, अच्छा है।।
🌱🥀

✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया, ✍️ हेमंत कुमार

बेदर्द दुनिया 🔆🔆 बड़ी बेदर्द है दुनिया,“हवाओं” के संग हो के कहां जाऊंगा। तुझमें बसती है रूह मेरी, तुमसे अलग हो के कहां जाऊंगा।...