आओ तुम्हें एक बहुत हसीन सा ख़्वाब दिखलाऊं मैं।
तुम कहो तो तुम्हारी किस्मत का सितारा चमकाऊं मैं।।
क्या तुम्हें फ़क़त जमीन पर ख़्वाब बुनने सिखलाऊं मैं?
तुम कहो तो तुम्हें फलक के पार क्या है दिखलाऊं मैं।
क्या तुम्हें अदब के शहर के लोगों का मिजाज दिखलाऊं मैं?
तुम कहो तो हर हकीकत, हर फसाने पर से पर्दा उठाऊं मैं।
क्या तुम्हें परिदों जैसी उड़ान भरने का शऊर बतलाऊं मैं?
तुम कहो तो तुम्हें भी वो नायाब सा तरीका सिखलाऊँ मैं।
क्या तुम्हें समय की चाल पर सरपट चलना सिखलाऊँ मैं?
तुम कहो तो वक़्त का दौड़ता पहिया थाम कर दिखाऊं मैं।
क्या तुम्हें शोहरत की बुलंदी की चमक-दमक दिखलाऊं मैं?
तुम कहो तो सुदूर झोपड़ी से झांकते सुकून से मिलवाऊं मैं।
आओ तुम्हें एक बहुत हसीन सा ख़्वाब दिखलाऊं मैं।
तुम कहो तो तुम्हारी किस्मत का सितारा चमकाऊं मैं।।
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✍️ हेमंत कुमार
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